World Book Fair 2024: चार पीढ़ियों के बीच पुल बनाती सुधांशु गुप्त की पुस्तक ‘कुछ किताबें कुछ बातें’

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वरिष्ठ कहानीकार और पत्रकार सुंधाशु गुप्त का नया संग्रह आ गया है. ‘कुछ किताबें कुछ बातें’ का नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला में लोकार्पण किया गया. भावना प्रकाशन से छपी ‘कुछ किताबें कुछ बातें’ के विमोचन के पर कथाकार महेश दर्पण, राजेन्द्र दानी, योगेन्द्र आहूजा, विवेक मिश्र, अवधेश श्रीवास्तव, कहानीकार सुषमा गुप्ता, कवयित्री स्वाति शर्मा और पत्रकार केशव चतुर्वेदी मौजूद थे. वक्ताओं ने सुधांशु गुप्त की कहानियों की तारीफ करते हुए कहा कि उनके पढ़ने का दायरा बहुत फैला हुआ है और किताब पढ़ने के बाद वे वह निरपेक्ष राय रखते हैं.

महेश दर्पण ने कहा कि यह किताब लेखक और पाठक के बीच नए तरह का पुल बनाने की कोशिश है. राजेंद्र दानी ने सुधांश की कहानियों की प्रशंसा करते हुए किताब के बेहतर होने की शुभकामनाएं दीं. योगेन्द्र आहूजा कहा कि उन्होंने सुधांशु की लिखी समीक्षाएं अधिक नहीं पढ़ी हैं, लेकिन साहित्य के प्रति उनकी गम्भीरता और गहराई उनकी कहानियों में दिखाई देती है. विवेक मिश्र का कहना था कि सुधांशु स्थानीय से लेकर वैश्विक साहित्य पर नजर रखते हैं. उनसे कुछ भी नहीं छूटता. उनकी सबसे अच्छी बात उनकी निष्पक्षता है. सुषमा गुप्ता ने कहा कि सुधांशु इतना अधिक और इतनी गति से पढ़ते हैं कि आप चकित रह सकते हैं. वह अपनी समीक्षाओं में कभी किसी के पक्षधर नहीं दिखाई देते. स्वाति शर्मा ने कहा कि इस किताब के जरिए सुधांशु कहानी, उपन्यास और आलोचना को ही एक्सप्लोर करते दिखाई देते हैं और वह इसमें काफी हद तक सफल हुए हैं.

सुधांशु गुप्त ने सबका आभार प्रकट करते हुए कहा कि यह किताब किसी और का मूल्यांकन नहीं करती बल्कि कहानी, उपन्यास की उनकी ही समझ को एक्सप्लोर करती है. उन्होंने कहा कि वे शुरू से यह चाहते थे कि रचना और आलोचना के बीच पाठक को एक पड़ाव और मिले जो उसे रचना को समझने में मदद करे. कुछ बातें कुछ किताबें उसी दिशा में एक प्रयास है.

कुछ किताबें कुछ बातें
सुधांशु गुप्त की पुस्तक ‘कुछ किताबें कुछ बातें’ में लगभग 125 किताबों के बारे में चर्चा की गई है. चार खंडों में विभाजित यह पुस्तक कहानीकारों की चार पीढ़ियों को सामने लाती है. पुस्तक का पहला खंड विदेशी साहित्य को समर्पित है. इसमें आंतोन चेखव, गाय दी मोपासां, फ्रैंज काफ्का, जैक लंडन और अनातोले फ्रांस लेखकों के रचनाकर्म पर बात की गई है. इसमें विदेशी अनुवाद को भी शामिल किया गया है.

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पुस्तक का दूसरा खंड है- कहानी की जमीन. इसमें हिंदी और तमाम भाषाओं के कहानीकारों को शामिल किया गया है. उर्दू के नैयर मसूद, हिंदी में मधुसूधन आनंद, असगर वजाहत, देवी प्रसाद मिश्र, महेश दर्पण, बलराम, प्रतिभा राय, रमेश बत्रा, धीरेंद्र आस्थाना, नफीस आफरीदी, राजी सेठ, कुमार अंबुज जैसे लेखक शामिल हैं.

तीसरे खंड है- उपन्यासों की जमीन. इसमें हिंदी के चर्चित उपन्यासकार अलका सरावगी, मधु कांकरिया, ऋषिकेश सुलभ, गीतांजलि श्री, गीत चतुर्वेदी, कृष्ण कल्पित सहित कई दिग्गज शामिल हैं. पुस्तक के चौथे खंड में आपको कहानी का नया चेहरा देखने को मिलेगा. इसमें नए कहानीकारों की संभावना पर बात की गई है. उपासना, सुषमा गुप्ता, तरुण भटनागर, मिथलेश प्रियदर्शी, संदीप मील, सबाहत आफरीन जैसे युवा लेखक शामिल हैं. इस खंड की खास बात ये है कि इसमें चार पीढ़ियों के रचनाकारों को शामिल किया गया है. एक तरफ नफीस आफरीदी और राजी सेठ हैं तो दूसरी तरफ सबाहत आफरीन जैसी नई लेखिका.

इस पुस्तक में सुधांशु गुप्त किसी की कहानी या उपन्यास की प्रशंसा या आलोचना नहीं कर रहे हैं, बल्कि कहानी और उपन्यास को एक्सपलोर कर रहे हैं कि कहानी कहां तक पहुंची है. विश्व के संदर्भ में हिंदी का साहित्य कहां खड़ा है. सुधांशु गुप्त का कहना है कि अकादमिक आलोचना बहुत संतोष जनक नहीं दिखलाई नहीं पड़ती. कई बार आलोचक खराब से खराब कहानी की बहुत अधिक प्रशंसा कर देते हैं. सुधांशु इस पुस्तक के माध्यम से रचना और आलोचना के बीच एक पुल बनाने की कोशिश कर रहे हैं.

छह साल के गहन अध्य्यन के बाद तैयार हुई है यह किताब, हिंदी साहित्य में अनुसंधान करने वालों के लिए बहुत ही मददगार साबित होगी. इस किताब के माध्यम से पूरे कालखंड को जान सकते हैं कि युवा पीढ़ी क्या लिख रही है और हमारे पूर्वजों ने क्या लिखा है.

Tags: Books, Hindi Literature, Hindi Writer, Literature

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