भगवद गीता में छिपे हैं Positive Parenting के खास टिप्स, जान लेंगे तो संवर जाएगी आपकी और बच्चे की जिंदगी



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Parenting Principles from Bhagavad-gita: हिंदू धर्म का पवित्र ग्रंथ श्रीमदभगवद गीता बच्चों के पालन-पोषण और नैतिक मूल्यों सहित जीवन के तमाम पहलुओं पर बेहद जरूरी ज्ञान देता है. इसकी शिक्षाएं पेरेंट्स और अभिभावकों को अपने बच्चों में दया, ईमानदारी और एकाग्रता की भावना को बढ़ाने में सही गाइड करती है. पैरेंट्स को अपने बच्चों को दूसरों की भावनाओं और नजरिए पर विचार करने के अलावा सहानुभूति से भरने की कोशिश भी करनी चाहिए. बच्चों के साथ विश्वास, सम्मान और खुली चर्चा पर आधारित एक बेहतरीन रिश्ता बनाने के लिए भगवद गीता के सिद्धांतों को लागू किया जा सकता है. आइए, जानते हैं कि कुशल पैरेंटिंग से जुड़े भगवद गीता के सिद्धांतों और उन्हें पालन करने के तीन सबसे अहम तरीके क्या हैं.

भगवद गीता के इन 3 श्लोकों से सीखें पैरेंटिंग के कुछ स्पेशल टिप्स (Parenting Principles from Bhagavad-gita)

‘तद् विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस तत्त्व-दर्शिनः’

इसका मतलब है: “उन लोगों के पास पहुंचे जिन्होंने जीवन के उद्देश्य को महसूस किया है. उनसे पूरी विनम्रता, ईमानदारी और श्रद्धा के साथ सीखें. जिनके पास सच्चा ज्ञान है वही आपको ज्ञान प्रदान करेंगे.”

इस श्लोक में, भगवान कृष्ण साधकों को बुद्धिमान और प्रबुद्ध व्यक्तियों से संपर्क करने की सलाह देते हैं, जिन्हें “ज्ञानी” के रूप में जाना जाता है जिन्होंने सच्चा ज्ञान (“ज्ञानम”) प्राप्त कर लिया है. यह संदेश बच्चों के लिए एक रोल मॉडल की अहमियत पर जोर देता है. माता-पिता को अपने कामकाज से मिसाल पेश करना चाहिए. माता-पिता खुद इन गुणों को अपनाकर अपने बच्चों में दया और ईमानदारी पैदा कर सकते हैं.  

कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादयः। 

लोकसंग्रहमेवापि संपश्यन्कर्तुमर्हसि

भगवत गीता के इस श्लोक में भगवान कृष्ण द्वारा अर्जुन को कहा गया है, “यहां तक कि बुद्धिमान व्यक्ति भी अपने स्वभाव के अनुसार काम करता है. प्राणी अपने स्वभाव का पालन करते हैं.”

यह श्लोक “कर्म” या किसी की सहज प्रकृति के अनुरूप कार्रवाई की अवधारणा पर जोर देता है. भगवान कृष्ण अर्जुन को सलाह देते हैं कि व्यक्ति स्वाभाविक रूप से अपने अंतर्निहित गुणों और प्रवृत्तियों के अनुसार ही काम करना चाहते हैं. उनका सुझाव है कि किसी के स्वभाव को कंट्रोल करने या दबाने की कोशिश करना बेकार है. माता-पिता अपने बच्चों को सभी हालातों में ईमानदारी और सत्य पर फोकस के साथ काम करना सिखाकर उनमें मजबूत भावना पैदा कर सकते हैं.

‘अनाद्यविद्या युक्तस्य पुरुषस्यात्म वेदनम्
स्वतो न संभवाद अन्यस तत्त्व-ज्ञानो ज्ञान-दो भवेत्’

इस श्लोक का अर्थ है, “जो व्यक्ति अज्ञान से जुड़ा है, उसके लिए आत्म-साक्षात्कार अकेले खुद की कोशिशों से ही संभव नहीं है. इसे सत्य को प्रकट करने वाले सच्चे ज्ञानी की मदद के बिना हासिल नहीं किया जा सकता है.”

भगवान कृष्ण बताते हैं कि आत्म-बोध, या किसी के वास्तविक स्वरूप को समझना, अकेले और निजी कोशिशों के जरिए हासिल नहीं किया जा सकता है. भगवान कृष्ण इस बात पर जोर देते हैं कि आत्म-बोध एक सच्चे ज्ञाता (“तत्व-ज्ञान”) के मार्गदर्शन और सहायता के बिना संभव नहीं है, जिसने अस्तित्व के अंतिम सत्य को महसूस किया है. यह श्लोक आध्यात्मिक पथ पर गुरुओं का मार्गदर्शन हासिल करने के महत्व के बारे में बताता है. धर्म या धार्मिकता ही भगवद गीता का केंद्रीय विचार है. माता-पिता अपने बच्चों को धार्मिक जीवन जीने और नैतिक सिद्धांतों का पालन करने के महत्व के बारे में सिखा सकते हैं.



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