Supreme Court Criticized Central For Denying Consideration Of Permanent Commission To Woman In Indian Coast Guard – नारी शक्ति की बात करते हैं, इसे करके भी दिखाएं : कोस्ट गार्ड में महिलाओं को परमानेंट कमीशन पर केंद्र से SC

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11j85ppo coast Supreme Court Criticized Central For Denying Consideration Of Permanent Commission To Woman In Indian Coast Guard - नारी शक्ति की बात करते हैं, इसे करके भी दिखाएं : कोस्ट गार्ड में महिलाओं को परमानेंट कमीशन पर केंद्र से SC

नई दिल्ली:

भारतीय सेना में महिला अधिकारियों के कमीशन ऑफिसर (Permanent Commission To Woman)के तौर पर नियुक्ति की कानूनी लड़ाई में कोस्ट गार्ड की भी एंट्री हो गई है. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इस मामले पर सोमवार को सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार के रवैये पर सवाल उठाए. अदालत ने पूछा- “कोस्ट गार्ड (Coast Guard) को लेकर आपका इतना उदासीन रवैया क्यों है? आप कोस्ट गार्ड में महिलाओं को क्यों नहीं चाहते?” चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा, “अगर महिलाएं सीमाओं की रक्षा कर सकती हैं, तो वे तटों की भी रक्षा कर सकती हैं. आप ‘नारी शक्ति’ की बात करते हैं. अब इसे यहां दिखाएं.”

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याचिकाकर्ता प्रियंका त्यागी ने खुद को कोस्ट गार्ड के ऑल विमेन क्रू का सदस्य बताया है, जो तटरक्षक बेड़े पर डोमियर विमानों की देखभाल के लिए तैनात किया गया था. यह याचिका AOR सिद्धांत शर्मा के हवाले से दाखिल की गई है. याचिकाकर्ता ने अपनी रिट में 10 वर्षों की शॉर्ट सर्विस नियुक्ति को आधार बनाते हुए एनी नागराज और बबिता पूनिया के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया है और न्याय की गुहार लगाई है. 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “आप सभी ने अभी तक हमारा बबीता पुनिया जजमेंट नहीं पढ़ा है. आप इतने पितृसत्तात्मक (Patriarchial) क्यों हैं कि आप महिलाओं को कोस्ट गार्ड क्षेत्र में नहीं देखना चाहते? आपके पास नौसेना में महिलाएं हैं, तो कोस्ट गार्ड में ऐसा क्या खास है, जो महिलाएं नहीं हो सकतीं? हम पूरा कैनवास खोल देंगे. वह समय गया जब हम कहते थे कि महिलाएं कोस्ट गार्ड में नहीं हो सकतीं. महिलाएं सीमाओं की रक्षा कर सकती हैं, तो महिलाएं तटों की भी रक्षा कर सकती हैं.” 

इस मामले में वरिष्ठ वकील अर्चना पाठक दवे ने बहस की. CJI डी वाई चंद्रचूड़ की बेंच ने इस मामले में केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. ये  याचिका दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए दाखिल की गई है, जिसमें याचिकाकर्ता को राहत नहीं दी गई थी.

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