Pitru Paksha 2023: पितृ पक्ष में पितरों को जल कैसे दें? इस दिशा में मुंह कर करना चाहिए तर्पण

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3514389 HYP 0 FEATURE20230923 193235 Pitru Paksha 2023: पितृ पक्ष में पितरों को जल कैसे दें? इस दिशा में मुंह कर करना चाहिए तर्पण

कुंदन कुमार/गया. भाद्रपद मास की शुक्ल पूर्णिमा के बाद पितृ पक्ष की शुरुआत हो जाती है. यह आश्विन मास के कृष्ण अमावस्या तक चलता है. इस वर्ष पितृपक्ष की शुरुआत 28 सितंबर से शुरू हो रही है जो 14 अक्टूबर तक होगा. पितृपक्ष मास पूर्वजों को समर्पित होता है. इस दौरान पितरों के निमित श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान किया जाता है. माना जाता है कि इससे पितर प्रसन्‍न होते हैं और परिवार पर उनका आशीर्वाद बना रहता है. लेकिन इन सब कामों को करते समय विशेष नियमों का पालन किया जाता है. इसमें दिशा का ज्ञान होना जरूरी है. जैसे पितरों को जल हमेशा किस दिशा में चढ़ाना चाहिए.

तर्पण की सामग्री लेकर इस दिशा में ही बैठना चाहिए
इस संबंध मे जानकारी देते हुए गया मंत्रालय वैदिक पाठशाला के पंडित राजा आचार्य बताते हैं कि श्राद्ध करते समय पितरों का तर्पण भी किया जाता है. अंगूठे के माध्यम से जलांजलि दी जाती है. अंगूठे से पितरों को जल देने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार हथेली के जिस हिस्से पर अंगूठा होता है, वह हिस्सा पितृ तीर्थ कहलाता है. तर्पण की सामग्री लेकर दक्षिण की ओर मुख करके बैठना चाहिए. इसके बाद हाथों में जल, कुशा, अक्षत, पुष्प और काले तिल लेकर दोनों हाथ जोड़कर पितरों का ध्यान करते हुए उन्हें आमंत्रित करें और जल को ग्रहण करने की प्रार्थना करें.

पितृ ऋृण से मुक्ति के लिए किया जाता है श्राद्ध
पितृ पक्ष में प्रतिदिन नियमित रूप से पवित्र नदी में स्नान करने के बाद नदी तट पर ही पितरों के नाम का तर्पण किया जाता है. इसके लिए पितरों को जौ, काला तिल और एक लाल फूल डालकर दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके खास मंत्र बोलते हुए जल अर्पित करना होता है.

हिंदू धर्म में पितृ ऋृण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाता है. हिंदू शास्त्रों में पिता के ऋृण को सबसे बड़ा और अहम माना गया है. पितृ ऋृण के अलावा हिन्दू धर्म में देव ऋृण और ऋषि ऋृण भी होते हैं, लेकिन पितृ ऋृण ही सबसे बड़ा ऋण है.

देव तीर्थ के लिए पूर्व दिशा में मुख करके करें तर्पण
राजा आचार्य बताते हैं कि देव तीर्थ के लिए पूर्व दिशा में मुख करके तर्पण किया जाता है. जबकि ऋषि तीर्थ में उतर दिशा में मुख करके जल और अक्षत से तर्पण कर सकते हैं. जबकि पितृ को दक्षिण दिशा में मुख करके जल और तिल से तर्पण किया जाता है. देवताओं को एक एक अंजली जल दिया जाता है. ऋषियों को दो-दो अंजली जल जबकि पितरों को तीन-तीन अंजली जल देने की बात शास्त्र मे वर्णित हैं.

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