Online fraud: उस ‘आखिरी सेल्फी’ के सबक हम सबके लिए | – News in Hindi
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मामला मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल का है, लेकिन इसे जानना सभी को चाहिए. खुशहाल जिंदगी में एक निर्णय कैसे पूरे परिवार पर भारी पड़ता है, यह उसी की बानगी है. आभासी दुनिया असल जिंदगी पर कैसे भारी हो जाती है, यह उसका भी एक सबब है. कल को यह किसी के भी साथ भी हो सकता है, किसी भी रूप में हो सकता है, इसलिए इस पर दो पल ठहर कर कुछ सोचे जाने की जरूरत है.
हुआ यूं कि भोपाल के एक युवा ने अपनी अच्छी खासी चलती नौकरी के बीच ‘एक्स्ट्रा कमाई’ के फेर में आनलाइन एप्प पर अपना रजिस्ट्रेशन करवा लिया और काम शुरू भी कर दिया. वह एक बार जो इसके अंदर गया तो फिर अपनी जान देकर ही मुक्ति पा सका! मीडिया में जो खबरें आ रही हैं, उनके मुताबिक इस पचड़े में पड़ने से उस पर भारी कर्ज चढ़ता गया और इसकी वसूली के लिए उसका मोबाइल फोन, कांटेक्ट लिस्ट और फोन की तस्वीरों तक को हैक कर लिया गया था. तथाकथित रूप से इन तस्वीरों में छेड़छाड़ (मार्फिंग) करके उन्हें वायरल भी किया जा रहा था. तकरीबन 17 लाख रुपए चुकाने थे और इसके लिए वह अपनी जीवन भर की कमाई खाली कर चुका था. अंतत: उसने अपने दोनों बच्चों को कोल्डड्रिंक में जहर दिया, अपनी ‘आखिरी सेल्फी’ खींची , सुसाइड नोट लिखकर भतीजी को भेजा, और पति—पत्नी फंदे पर लटक गए.
हम में से तकरीबन सभी लोगों के पास ऐसी कंपनियों के फोन-मैसेज जरूर आते हैं. संविधान में दिए गए ‘निजता के अधिकार’ की कोई हैसियत नहीं बची है, क्योंकि चंद पैसों में हमारा सारा निजी डेटा, फोन नंबर कंपनियों के हाथों बिक जाता है. हम खुद भी मॉल में, बाजार में, पेट्रोल पम्प पर, एयरपोर्ट और रेल्वे स्टेशन पर खड़े हुए कई कंपनियों के कर्मचारियों को अपना फोन नंबर बिना कोई ज्यादा सोचे-समझे दे ही देते हैं. डिजिटल इंडिया में जब सभी योजनाओं को भी फोन नंबर, आधार और तमाम जानकारियों से जोड़ ही दिया गया हो तब इस बात से बचना तो मुश्किल ही है कि आपका फोन नंबर किसी को पता न चले, लेकिन क्या उसके बाद की मुश्किलों से भी नहीं बचा जा सकता?
आंकड़े बताते हैं कि भारत में पिछले सालों में आनलाइन फ्रॉड बहुत तेजी से बढ़े हैं. 2019 में डेबिट और क्रेडिट कार्ड, एटीएम कार्ड, आनलाइन फ्रॉड, ओटीपी से संबंधित फ्रॉड और इसी तरह के 6229 मामले दर्ज हुए थे, वहीं अगले साल इनकी संख्या बढ़कर 10395 हो गई, और इसके अगले साल यानी 2021 में 14007 मामले नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो ने दर्ज किए. यानी हर दिन औसतन 38 मामले तो ऐसे हैं जो दर्ज होते हैं, दर्ज नहीं होने के मामले इससे कहीं ज्यादा होंगे क्योंकि कई मामलों में लोग ठगी का शिकार होने के कारण शर्मिंदगी से बचने के लिए अपना मामला पुलिस या साइबर सेल तक नहीं ले जाते अथवा कई बार अमाउंट छोटा होने के कारण छोड़ देते हैं.
दिनों दिन बढ़ते मामलों का एक कारण आधी अधूरी डिजिटल साक्षरता का होना है, और यह भी कि हैकर्स नित्य ही नए-नए तरीके ईजाद कर रहे हैं, इससे बचने का कोई और हथियार नहीं है सिवाय इसके कि आप खुद जागरुक नहीं हो जाते.
गांठ बांध लें, बाजार में आया कोई भी व्यक्ति समाजसेवा या आपका भला कर देने की नीयत से आपके पास नहीं पहुंच रहा है, इसलिए सबसे पहला मंत्र तो यह है कि ऐसे हर कॉल/चैट/मैसेज को शक के नजरिए से देखना और दूसरा किसी भी लालच में नहीं पड़ना. मेरे पास ही पिछले सालों में ऐसे कितने फोन कॉल्स, चैट अलग-अलग तौर तरीकों से आए हैं और शिकारी की तरह ही अपना जाल फैलाया है, हर बार तरह-तरह का लालच, लेकिन यदि आप इनकी थोड़ी सी भली पड़ताल करेंगे इनसे क्रॉस क्वेसचनिंग करेंगे या अपने को आपके मौजूदा वर्ग से नीचे या ऊपर का बता देंगे (मसलन यदि आप नौकरीपेशा हैं तो उनसे कहें कि मैं किसान हूं और खेत में पानी दे रहा हूं) तो आपका फोन तुरंत ही काट दिया जाएगा. या आप यह कहें कि मैं कोई भी डील फोन कॉल पर या चैट पर नहीं करता हूं और आप आकर मुझसे मिलिए तब भी उनका पूरा गणित ही गड़बड़ा जाता है. पर इसके लिए सबसे जरूरी बात यह है कि बिना लालच में पड़े आप खुद पर, खुद की क्षमताओं पर, अपनी ईमानदारी और काबिलियत पर यकीन रखें. यही इस बेईमानी से बचने का सबसे सटीक रास्ता है.
इसके लिए जरूरी यह भी है कि आभासी दुनिया से उस दुनिया में लौटकर आएं जहां कि एक-दूसरे के लिए मेलजोल का महत्व था. जिसमें आभासी नहीं सचमुच की शेयरिंग केयरिंग थी, एक दूसरे के साथ खड़े होने का भाव था और किसी भी मुसीबत से बाहर निकाल लिए जाने का सामूहिक साहस भी था, भले ही संकट कितना ही बड़ा क्यों न हो.
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