IIMC की फीस बढ़ोत्तरी को लेकर छात्रों का धरना प्रदर्शन, कुछ छात्रों को किया निलंबित
IIMC के एक छात्र के माध्यम से इस मसले को समझने की कोशिश करते हैं।

कुछ बातें जो मैं अपने साथियों एवं सीनियर्स तक पहुँचाना चाहता हूँ।
हम छात्रों द्वारा 9 तारीख को आयोजित इवेंट सिर्फ बातचीत थी। उसका नाम हमनें ‘इन ऑनर ऑफ एडुकेशन’ रखा था।

इसके तहत हम लोग किस तरह हमारे सभी साथी जो गरीब हैं या किसी और कारण से फीस नहीं भर सकते हैं और हमारा इंस्टिट्यूट किस तरह हमारी कम फीस की मांग इग्नोर कर रहा है पर बात करने वाले थे। एक लाइन में बोलू तो अफोर्डेबल फीस स्ट्रक्चर पर बातचीत थी।
लोगों को इस बात पर असहमती है कि हमने 9 तारीख़ ही क्यों चुनी इसके लिए। 9 तारीख इसलिए क्योंकि इस दिन हमारे सीनियर्स के अलावा कई अन्य लोग कैंपस में आने वाले थे। हम चाह रहे थे कि हमारी जो भी बातचीत हो उसमें वह भी शामिल हों जिससे हम लोग उनके सवाल और सुझाव भी शामिल कर पाएं अपनी मांगों में। हमारी इतनी क्षमता नहीं है कि किसी अन्य दिन हम अपने सारे सीनियर्स को भी बुला सकें।
पोस्टर्स हमने इसलिए बनाये थे जिससे कैंपस में आने वाले सीनियर्स उन्हें दूर से पढ़ ले और हमारी बात उन तक बिना उन्हें डिस्टर्ब किये पहुँच जाए। फिर अगर उन्हें हमारी बात सही लगे तो हमसे मिले।
कुछ के सवाल हैं कि पार्टी करने,दोस्तों से मिलने,अवार्ड लेने आया आदमी क्यों शिक्षा पर बातचीत और सुझाव देगा। यहां हमनें थोड़ा रिस्क लिया क्योंकि हमें लगा कि एक पढ़ा लिखा विवेकवान व्यक्ति जीवन के किसी भी क्षण में सस्ती शिक्षा के लिए उठ रही बातचीत में अपनी आवाज (समर्थन) जरूर देगा। उसके लिए पार्टियाँ करना दोस्तों से मिलना और अवार्ड लेना जरूरी हो सकता है लेकिन सस्ती शिक्षा सबसे ज्यादा जरूरी होगी। वह भी तब जब उनके खुद के अपने भाई-बहन सस्ती शिक्षा की आवाज को मजबूत करने के लिए उनका इंतजार कर रहे हों।

इसका एक और विशेष कारण है क्योंकि IIMCAA के कार्यक्रम में 2000 के आसपास लोग आते हैं। जबकि IIMCAA कैसे काम करता है यह मुश्किल से उसके सिर्फ 20 से 30 लोगों को पता होता है।बाकी लोगों को वह बुलाता है और वह मिलने चले आते हैं।पुराने मित्रों और दिनों को याद करना किसे अच्छा नहीं लगता।
उन्हें मतलब नहीं होता है कि IIMCAA कहाँ से फंडिंग लेता है कितना वह खर्च करता है और बचे हुए फंडिंग का क्या करता है। ऐसे सीनियर्स को हम बताना चाहते थे कि IIMCAA की फाइनेंसियल गतिविधियां किस तरह से हम छात्रों की कम फीस की मांग को प्रभावित कर रही हैं। हम उन्हें बताना चाहते हैं कि IIMCAA हमारे कॉलेज के नाम से करोड़ों की स्पॉन्सरशिप लेता है और दो-चार लाख की scholarship बांटकर बाकी अपने पास रख लेता है। जबकि अगर यही आयोजन हमारा खुद का कॉलेज कराए तो बचा हुआ पैसा कॉलेज पर रहेगा जिसका इस्तेमाल कर कॉलेज हमें सुविधाएं अथवा जरूरी छात्रों की फीस माफ कर फायदा दे सकता है।
हमारे सवाल IIMCAA से नहीं उसकी कार्यशैली से थे। हम एलुमनाई का विरोध करने नहीं,उनका साथ लेने बैठे थे। लेकिन एडमिनिस्ट्रेशन को जब हमने अपने कार्यक्रम के बारे में सूचित किया। ध्यान रहे सूचित करना चाह रहे थे उनसे अनुमति नहीं, क्योंकि संस्थान में बातचीत करने के लिए अनुमति नहीं ली जाती है और फिर हमारा संस्थान तो मीडिया का है तो वह वैसे भी हमे बोलने से क्यों रोकेगा।
लेकिन प्रशासन ने इसपर आपत्ति जतायी और अनुशासनात्मक कार्यवाही का भय दिखाया । हम सोच रहे थे की कार्यक्रम के दिन अगर शिक्षा की बात होती है तो इसमें संस्थान की बेइज्जती कैसे होगी? बल्कि यह तो प्रशंसनीय बात होगी कि एक संस्थान शिक्षा पर बात करने लिए 365 दिन तैयार रहता है। लेकिन हम गलत थे।

प्रशासन समझ गया कि अगर इतने सारे लोगों का समर्थन हमें मिल गया यानी सस्ती शिक्षा की बात करने वालों को। तो जो प्रशासन पिछले चार महीनों से हमारी मांगों को टाल रहा है वह ज्यादा लंबा नहीं चल पाएगा और उस जल्द से जल्द कुछ करना पड़ेगा। मतलब उसका स्टूडेंट फ्रेंडली झूठा लिबास उतर जाएगा।
संस्थान नहीं चाहता था कि उसकी यह बात सबको पता चले कि कैसे वह पिछले 4 महीनों से हमारी सस्ती शिक्षा की मांगों को हास्यास्पद कह कर हमें भोला भाला बताकर ,चैन से लेदर की कुर्सी पर बैठकर हमारी तड़प,लगन और मेहनत का खेल देखकर आनंदित होता रहा है।
हमारे लिए भी अब यह बात सब तक पहुचाने का एकमात्र चांस कल के कार्यक्रम में आने वाली भीड़ ही थी।
प्रशासन की धमकी से हम भी डर गए थे लेकिन जो भी बातें हमने अपने आंदोलन के शुरुआत में सोची थीं कि भले ही हमें सस्पेंड होना पड़े, रस्टीकेट होना पड़े या भूख हड़ताल करके जान ही क्यों न देना पड़े लेकिन हम पीछे नहीं हटेंगे। भले ही एक आदमी क्यों न बचे लेकिन डटा रहेगा। क्योंकि हम सिर्फ अपने लिए नहीं, अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी लड़ रहे हैं।
अब वह समय आगया था। हमने वर्तमान और आने वाले छात्रों,सभी का हित और अपने लक्ष्य को सोचते हुए, हमें पीछे हटना गुनाह लगा। छल लगा खुद के साथ,आत्मा के साथ। इसलिए हमने कुछ लोग होते हुए भी अपनी बात रखी।
हम अपने बाकी छात्रों को अपनी यह बात शायद कम समय के कारण समझा नहीं पाए और उन्होंने भी कुछ खास दिलचस्पी नहीं दिखाई क्योंकि उन्हें डराने के लिए नोटिस जो आ चुका था।
हम कुछ लोग थे तो एडमिनिस्ट्रेशन को हमें सस्पेंड करने में 2 मिनट भी नहीं लगे। लेकिन क्या हमारा इसमें निजी फायदा था,क्या इसमें हमारी कुछ पॉलिटिक्स थी यह अब आप लोग समझें। मेरा मकसद सिर्फ सस्ती शिक्षा है ।
मुझे सस्पेंड होने से कुछ खास निराशा नहीं है क्योंकि मेरे लिए सस्पेंशन और 40 हज़ार फीस भरना एक ही बात है।दोनों मुझे मेरी पढ़ाई से दूर करते हैं।
हम लोगों के कार्यक्रम में कम होने से एडमिनिस्ट्रेशन समझ गया कि स्टूडेंट्स बंट गए हैं। इसी का फायदा लेकर उसने हम सभी छात्रों से किया खुद का वादा तुरंत तोड़ दिया और फीस सर्कुलर निकाल दिया। मतलब हमारी 20 दिनों तक ओस भरी रातों में बैठना बिना मतलब कर दिया उन्होंने।
विश्वास रखिये हम अंत तक डटे रहेंगे लेकिन हमारी संख्या कम होने की वजह से शायद हमारा मकसद कामयाब न हो पाए। हम मकसद को कुर्बान नहीं कर सकते। इसके लिए भले ही आपसे हमे समर्थन मांगना क्यों न पड़े। दुख बस इस बात है कि हमे मांगना पढ़ रहा है।

हम चाहते हैं कि हम छात्र साथ आए नहीं तो एडमिनिस्ट्रेशन हमारी मांगे मानना तो दूर सुनेगा भी नहीं।
मेरे पास 40 हज़ार रुपये नहीं है भरने को। मैं शायद फीस न भर पाऊं और एडमिनिस्ट्रेशन मुझे डिप्लोमा देने से मना कर देगा। मेरे जैसे कई लोग है। मुझे पता है कि आप लोग भर सकते हैं। लेकिन मुझे यह भी पता है कि जब मैं फीस कम करने के लिए बोलूंगा administration से आप मेरे साथ पहले की तरह जरूर आएंगे क्योंकि मुझे पता है आप नहीं चाहते कि गरीबी की वजह से कोई पढ़ नहीं पाए।
वह समय आगया है अब दोस्त। प्लीज हमारे साथ आईये हमें आपके हमदर्दी की नहीं आपके साथ कि जरूरत है। हम मानते है कि हमसे कुछ भूलें भी हुई होगीं,हमारी आपसी-निजी असहमतियां होगीं ।लेकिन हम इन चीजों को इतना बड़ा नहीं बना सकते कि अपना मकसद पीछे छूट जाए। हम तो कभी भूलेंगे ही नहीं ,आने वाली पीढ़ियां भी आपको याद रखेंगी। अब मत रोकिए कदमों को क्योंकि अब रुके तो फिर आगे चलने के लिए रास्ता ही नहीं बचेगा। हम इंतज़ार में हैं आपके……आइए….
सचिन बघेल