हमारी प्रासंगिकता
खुशकिस्मत हैं वो देश और उसके लोग जिनकी ट्रेनों में भी पुस्तकालय है…..
तुम भी ट्रेन में मंदिर की जगह यदि #पुस्तकालय बना दिया होता तो न जाने कितने लोगों का जीवन बदल गया होता…लेकिन आप ऐसा चाहते ही नही।

और फिर गधो को गधा बनाए रखने का मजा ही कुछ ओर है।