Famous Poet Gulzar, Sanskrit Scholar Rambhadracharya Selected For Jnanpith Award 2024 – मशहूर कवि गुलजार, संस्कृत विद्वान रामभद्राचार्य ज्ञानपीठ पुरस्कार के लिए चयनित

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70t7lqao jnanpith award Famous Poet Gulzar, Sanskrit Scholar Rambhadracharya Selected For Jnanpith Award 2024 - मशहूर कवि गुलजार, संस्कृत विद्वान रामभद्राचार्य ज्ञानपीठ पुरस्कार के लिए चयनित

चित्रकूट में तुलसी पीठ के संस्थापक और प्रमुख रामभद्राचार्य एक प्रसिद्ध हिंदू आध्यात्मिक गुरु, शिक्षक और चार महाकाव्य समेत 240 से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं. ज्ञानपीठ चयन समिति ने एक बयान में कहा, ‘‘यह पुरस्कार (2023 के लिए) दो भाषाओं के प्रतिष्ठित लेखकों को देने का निर्णय लिया गया है – संस्कृत साहित्यकार जगद्गुरु रामभद्राचार्य और प्रसिद्ध उर्दू साहित्यकार गुलजार.”

इससे पहले गुलजार को उर्दू में अपने कार्य के लिए 2002 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 2013 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार, 2004 में पद्म भूषण और कम से कम पांच राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिल चुके हैं. उनके कुछ बेहतरीन कार्यों में फिल्म ‘‘स्लमडॉग मिलयेनियर” का गीत ‘‘जय हो” शामिल है, जिसे 2009 में ऑस्कर पुरस्कार और 2010 में ग्रैमी पुरस्कार मिला. समीक्षकों ने प्रशंसित फिल्मों जैसे ‘‘माचिस” (1996), ‘‘ओमकारा” (2006), ‘‘दिल से” (1998) और ‘‘गुरु” (2007) सहित अन्य फिल्मों में गुलजार के गीतों को सराहा.

गुलजार ने कुछ सदाबहार पुरस्कार विजेता फिल्मों का भी निर्देशन किया, जिनमें ‘‘कोशिश” (1972), ‘‘परिचय” (1972), ‘‘मौसम” (1975), ‘‘इजाजत” (1977) और टेलीविजन धारावाहिक ‘‘मिर्जा गालिब” (1988) शामिल हैं. भारतीय ज्ञानपीठ ने एक बयान में कहा, ‘‘अपने लंबे फिल्मी करियर के साथ-साथ गुलजार साहित्य के क्षेत्र में भी मील के नये पत्थर स्थापित करते रहे हैं. कविता में उन्होंने एक नई शैली ‘त्रिवेणी’ का आविष्कार किया है…. गुलजार ने अपनी कविताओं के माध्यम से हमेशा कुछ नया रचा है. पिछले कुछ समय से वह बच्चों की कविता पर भी खास ध्यान दे रहे हैं.”

रामभद्राचार्य रामानंद संप्रदाय के वर्तमान चार जगद्गुरु रामानंदाचार्यों में से एक हैं और 1982 में उन्हें यह उपाधि मिली थी. 22 भाषाओं पर अधिकार रखने वाले रामभद्राचार्य ने संस्कृत, हिंदी, अवधी और मैथिली सहित कई भारतीय भाषाओं में रचनाओं का सृजन किया है. 2015 में उन्हें पद्म विभूषण पुरस्कार मिला.

रामभद्राचार्य की वेबसाइट के अनुसार, उनका नाम गिरिधर मिश्र था. दो महीने की उम्र में एक प्रकार के संक्रामक रोग ‘ट्रेकोमा’ के कारण उनकी आंखों की रोशनी चली गई और शुरुआती वर्षों में उनके दादा ने उन्हें घर पर ही पढ़ाया. पांच साल की उम्र में उन्होंने पूरी भगवत गीता और आठ साल की उम्र में पूरी रामचरितमानस याद कर ली थी.

वर्ष 1944 में स्थापित ज्ञानपीठ पुरस्कार भारतीय साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए प्रतिवर्ष दिया जाता है. यह पुरस्कार संस्कृत भाषा के लिए दूसरी बार और उर्दू भाषा के लिए पांचवीं बार दिया जा रहा है. पुरस्कार में 21 लाख रुपये की पुरस्कार राशि, वाग्देवी की एक प्रतिमा और एक प्रशस्ति पत्र दिया जाता है.

पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं का निर्णय ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता प्रतिभा राय की अध्यक्षता में एक चयन समिति द्वारा किया गया. चयन समिति के अन्य सदस्यों में माधव कौशिक, दामोदर मावजो, प्रोफेसर सुरंजन दास, प्रोफेसर पुरुषोत्तम बिलमाले, प्रफुल्ल शिलेदार, प्रोफेसर हरीश त्रिवेदी, प्रभा वर्मा, डॉ जानकी प्रसाद शर्मा, ए. कृष्ण राव और ज्ञानपीठ के अध्यक्ष मधुसूदन आनंद शामिल हैं. वर्ष 2022 के लिए यह प्रतिष्ठित पुरस्कार गोवा के लेखक दामोदर मावजो को दिया गया था.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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