Book Review: इंजीकरी: आग लिख रही हूं और पानी भी लिखूंगी

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Anamika Anu Poetry Collection Injikari 2023 10 e4b01ce7a71e014e0f729e6c64e1f8c2 Book Review: इंजीकरी: आग लिख रही हूं और पानी भी लिखूंगी

(अंकित नरवाल/ Ankit Narwal)

विश्वभर में कविताओं के बारें में सूत्र वाक्यों के तौर पर अनेक बातें कही जाती रही हैं. काव्य की उत्पत्ति का ‘दैवीय सिद्धांत’ हो या फिर ‘परम्परा की निर्व्येक्तिकता’ तथा बाद में उसके ‘खुले पाठ’ तक की आलोचकीय व्याख्या; कविता आह्लाद की तरह सृजित होती है. निःसंदेह वह सभ्यता के परिष्कार की तरह देखी-पढ़ी गई है. बहुधा अनेक जगह उसके अभिष्ठ अर्थ को काष्ठ के भीतर विराजमान रहने वाले अग्नि-तत्त्व की तरह व्याख्यायित किया गया है. एक कविता अपनी लेखकीय यात्रा में जितना अधिक विस्तार पाती है, उसके अर्थों का विन्यास भी उतना ही अधिक होता जाता है. कविता बहुत दूर से आती हुई कोई पुकार भी हो सकती है और पार्श्व में कंधे पर हाथ रखकर बंधाया गया ढाढ़स भी. अपनी व्यापकता में वह एक संवाद रचती है. यह संवाद हर तरह के मौन के बावजूद कई बार अनसुना रह सकता है और कभी-कभी अपने निहितार्थ में गहरी चीखों के बीच भी साफ-साफ सुनाई देता है. कविता अपनी बुनावट में विरोधों के बीच सामंजस्य रचती है. वह शब्दों के सहारे केवल किन्हीं अर्थों को अभिव्यक्ति ही नहीं देती, बल्कि उसके भीतर एक सीमा के बाद चुप्पी भी अपने अर्थ पा जाती है. बशर्ते वह काव्य होने की शर्तों पर खरी उतरती हो. उसमें समाज के हालात देखकर पूरी तरह निराश होकर सिनिसिज्म की राह न हो और न ही किसी तरह का सरल राजनीतीकरण. वह भाषा के बीच मुहावरे तलाशे. जो कवि एक ही क्षण में अपनी कविताओं को गोला-बारूद बना देते हैं, दूसरे ही क्षण उनकी कविताएं कमीज बनकर उपस्थित हो जाया करती हैं. अच्छी कविता इस तरह के साधारणीकरण का विलोम रचती है.

निर्विवादित रूप में हमारी समकालीन हिंदी कविता जितनी अधिक छंदमुक्त हुई है, उतनी ही मिकदार यर्थाथ की परतों को उघाड़ने में भी हुई है. सद्य प्रकाशित युवा लेखिका अनामिका अनु का पहला काव्य-संग्रह ‘इंजीकरी’ पढ़ते हुए जो पहला शब्द स्मृति में कोंधता है- वह है प्रेम. अनु को ज्ञात है कि ‘प्रेम करती हुई स्त्रियां तीर्थ होती हैं.’ इस कवि के लिए-
प्रेम की स्मृतियां
कहानी होती हैं
पर जब वे आंखों से टपकती हैं
तो छन्द हो जाती हैं.

अनामिका अनु की कविताएं इन कहानियों के बीच मौजूद रहने वाली मित्रता के महत्त्व को समझती हैं. यह दोस्त प्रेमविहीन जीवन में कंटिली अवसादमयी झांड़ियों के उगने से पहले ही मौन को काट देगा, जिससे आत्मा तक फफुंद न पहुंच पाए. वहां रत्न रूप में उपस्थित रहेगी केवल मित्रता-
मित्र की तलाश
जो बैठे थामे हाथ सुने घण्टों
तोड़े चुप्पी, साथ हँसे साथ रोये
जो निर्णय नहीं दे सलाह भी नहीं
पर समझ सकने का हुनर रखता हो।

पुस्तक समीक्षाः प्रेम शाश्वत होता है, कभी मिटता नहीं, बिल्कुल ‘यारेख’ की तरह

इस दुनिया को ऐसे ही खूबसूरत दोस्तों की जरूरत है. जो हाथ पकड़ें और दिल का हाल जान लें. पर यह कवि दुनिया के मतलबी व्यवहार से दुखी है; नाउम्मीद नहीं. उम्मीद अनामिका अनु की कविताओं में एक स्थाई भाव की तरह मौजूद है. यह हर तरह की जड़ता के विरोध का कवि है. इसका मानना है –
जिनके लिए प्रेम खेल है उनको प्रेम में खिलौने मिले
जिनके लिए प्रेम श्रद्धा थी, उन्हें प्रभु मिले।
जिनके लिए साहचर्य, उन्हें साथी मिले।
जिनके लिए समर्पण उन्हें स्वर्ग।
जिनके लिए समय था, उन्हें जीवन के कुछ और वर्ष।
जिनके लिए डर था उन्हें स्मृतियां मिलीं।
जिनके लिए साहस, उन्हें साथ मिला।
जिनके लिए सबकुछ उन्हें सिर्फ और सिर्फ प्रेम मिला।

यह कवि अपनी कविताओं के जरिये जिस परिवेश की निर्मिति के लिए जद्दोजहद कर रहा है, उसमें सबसे अधिक खतरा प्रेम के लिए है. यह संग्रह परिवार से देश और निजता से उत्तर आधुनिकता के पोस्ट-ट्रूथ तक की यात्रा के दौरान हर उस एकांत से जूझ रहा है, जिसमें मानवीय संवेदना छिजती जा रही हैं. अनामिका अनु की कविताएं ‘झगड़े की जगह’ नहीं हैं, बल्कि ‘विरुद्धों का सामंजस्य’ करने वाली, संघर्ष को शांत करने वाली जगह की तरह हैं. यह कवि क्षमा के महत्त्व को समझता है, जिसे मालूम है –

तुम्हारे पाप से बड़ी होगी मेरी क्षमा
मेरी क्षमा से बहुत बड़े होंगे
वे दुःख…
जो तुम्हारे पाप पैदा करेंगे।

लेकिन इस कवि को यह कहना भी नहीं भूलता कि ‘तुमने टहनी भर पाप किए. मैंने पत्तियों में माफी दी.’ यह क्षमा के उस संवेदन को जानता है, जो अंततोगत्वा किसी भी व्यक्ति के हृदय को मुक्तावस्था तक ले जा सकता है. मुक्ति की इस यात्रा में समर्पण एक स्थाई मूल्य है. यह समर्पण कोई आध्यात्मिक किस्म का नहीं है, बल्कि एक-दूसरे की क्रिया के लिए वैसी ही प्रतिक्रिया का साधारण-सा उदाहरण, न्यूटन का तीसरा नियम-

तुम मेरे लिए शरीर मात्र थे
मुझे भी तुमने यही महसूस कराया
मैं तुम्हारे लिए आसक्ति थी
तो तुम मेरे लिए प्रार्थना कैसे हो सकते हो?

यही तो है न्यूटन का नियम. जैसी क्रिया वैसी ही प्रतिक्रिया. ऐसा ही नियम मानकर स्वयं को दुर्ग बना देने वाली साहसी लड़कियां अनामिका अनु की काव्य नायिकाएं हैं. ये हर तरह की रूढ़ियों को अपने पैरों तले कुचलने का साहस रखती हैं. ये वे लड़कियां हैं, जिन्हें धर्मच्युत कहकर लताड़ा गया, पर वास्तव में ये थीं– धर्ममुक्त.

धर्म को ताक पर रख चुकी लड़कियां
स्वयं पुण्य हो जाती हैं
और बताती हैं-
पुण्य! कमाने का नहीं
खुद को सही जगह पर खर्च करने से होता है
वे न परम्परा ढोती हैं
न त्योहार
वे ढूँढ़ती हैं विचार
वे न रीति सोचती हैं
न रिवाज
वे सोचती हैं आज
नयी तारीख लिखती
इन लड़कियों की हर यात्रा तीर्थ है।

हमारी हिंदी की कविताओं में बहुत-सी कविताएं विषय प्रधान रही हैं. इनमें दुनियावी सच एक सूचना की तरह दर्ज होता रहा है. कविताओं में बहुत ठंडा और निर्व्यैक्तिक दोहराव मिलता है. उनमें दुर्भाग्य की गवाही ज्यादा है. पर ऐसे काव्य-विरोधी माहौल के बीच अनामिका अनु की कविताएं इस शोक और उद्विग्नताओं से मुठभेड़ करती हैं. उनके यहां गांव-घर-पड़ोस और शहर सभी के लिए जगह है. उनके यहां आए रूपक किसी वैचारिक पूर्वाग्रह की उपज नहीं हैं, बल्कि यही उनके कविता लिखने की उत्तेजक प्रक्रिया हैं. उनका काव्य पुरुष जानता है कि ‘यह दुनिया भिन्न को भीड़ की तरह मारती है’ और ‘फुटपाथ घर नहीं होता.’.

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अनु की काव्य नायिकाएं उस तीखे स्त्रीवाद की तरह नहीं आती हैं, जो प्रतिरोध को ही अपना सबसे बड़ा हथियार मानती हों. उनकी कविताओं में प्रतिरोध का स्वर सहज होते हुए भी अपनी तीक्ष्णता नहीं खोता. वे ज्ञान के लिए झुकी हैं और नमक की तरह घुल गई हैं. उन्हें देह से आकर्षण नहीं, बल्कि उनके सपने में आने वाला पुरुष सहयोगी है. वे पितृसत्तात्मक संरचना द्वारा परम्परा का हवाला देकर उनके चारो ओर खींचे गए पहरे को भेदने की युक्ति बखूबी जानती हैं. वे सीधे और तीखे सवाल करती हैं –

मुझे दालान चाहिए
मैं बदले में आंगन दे दूंगी
मुझे बैठकी चाहिए
बदले में रसोई ले लो।

यह नायिकाएं मोटरसाइकिल चाहती हैं, गोबर के उपले नहीं. इनमें खेत जोतकर घर चलाने का माद्दा है. ये विश्वविद्यालय चाहती हैं और नौकरी भी. इनके लिए पार्लर किसी काम के नहीं, इन्हें चाहिए पुस्तकालय. सामाजिक संरचना में इनके हिस्से लिखी गई विदाई से अब इन्हें परहेज है. ये भी अपने लिए खुला आसमान चाहती हैं. हालांकि, इनके इस चाहने भर में पुरुष के प्रति कहीं कोई दुराभाव नहीं है, बल्कि सहयोग और मैत्री ही वहां प्रमुख है. इनके जहन में अभी भी घर का महत्त्व एक स्थाई भाव की तरह मौजूद है, जहां पहुंच कर कभी भी बच्चे-सा महसूस किया जा सकता है. यह ऐसे पति की ओर उत्साह से देखती हैं, जो अपनी पत्नियों के सपनों को चुजों की तरह सेंकते हैं और फिर उनसे निकलती हैं, सपनों की उड़ान.

अनामिका की कविताओं में विद्रूपता और आतंक के प्रति एक तीखा प्रतिरोध है. यह प्रतिरोध काव्य की शास्त्रीय बनावट को कहीं तोड़ता नहीं है, बल्कि उसके भीतर रहकर एक व्यापक वितान रचता है. अनामिका अनु को अपनी माटी से प्यार करने वाला रसूल याद है, वह जानती हैं कि जाने कितनी लड़कियों ने अपने देशप्रेम की कीमत अपनी जान देकर चुकाई है. उसका कवि हृदय सुंयक्त राष्ट्र संघ की सभा में रोती लड़की के साथ जोर से धड़कता है. उसका प्रयास है कि दुनिया में प्रेम सभी के बीच एक मध्यस्थ की तरह रहे-

संयुक्त राष्ट्र संघ की सभा में रो रही थी
एक ईरानी लड़की
उसके रोने भर से जाग गयी थी क़ब्रों में सोयी
उन बच्चियों की आत्माएं
जिनकी देह पर उम्र से बड़े घाव थे
उस यज़ीदी लड़की ने एक बार कहा था
कि काश युद्ध में सतायी गयी वह अन्तिम लड़की
हो पाती
और आमीन में गूंज उठी थीं सब क़ब्रें।

अनामिका अनु की कविताएं अपने समय को कहीं दूर से नहीं देख रही हैं, बल्कि वह उस तनाव में स्वयं शामिल हैं. उनके यहां विश्वयुद्धों में तबाह हो गए परिवार दर्ज हुए हैं, वहीं निकट कोरोना में तबाह हुई जिन्दगियां भी मौजूद हैं. वह इस तनाव का कोई विध्वंसक गीत लिखने वाली कवि नहीं हैं, बल्कि वह उस तनाव के भीतर मौजूद रहने वाले तंतुओं को उजागर करती हैं. उन्हें मालूम है, विपदा में सहयोग कहां से मिल सकता है और कोरोना में वह कैसे समाप्त कर दिया. वह जानती हैं कि उसका काव्य नायक कोरोना से नहीं बल्कि पुलिस की लाठियों से मरा था–

मैं बाजार गया था
माँगने भीख
तीन दिन से भूखा था
फुटपाथ का पड़ोस नहीं होता
जहां से माँग ली जाये रोटी या मदद
बाजार दूर होता है
जहां माँगी जा सकती है भीख।

अनामिका का जन्म बिहार में हुआ और उनका जीवन केरल में बीत रहा है. उनकी शिक्षा विज्ञान में हुई और उनका संस्कार कविता में. उनका वैज्ञानिक अध्ययन इस संग्रह की कविताओं पर छौंक की तरह उभरा है, परंतु यह कहीं से भी इन्हें दुर्बोध्य नहीं होने देता. यह इस कवि से सीखने की चीज है. इन कविताओं में मुक्तिबोध का सूत्र वाक्य कि ‘कवि का अन्तःसंघर्ष ही कविता के लिए सबसे बड़ी चीज है’, सफल होता दिखता है. यह कवि विश्व इतिहास से अनेक चरित्रों को खींच लाती है और उनसे एक सहज सामंजस्य बैठाती है. इनके लिए जिन्दगी की एडिटिंग जरूरी है. अब भी इस कवि को भूख से मुकाबले में कविताओं से गहरी उम्मीद है. यह माँओं से प्रार्थनारत हैं कि अबकी कविताएं जलाई जाएं, ताकि उन पर भूखे-नंगे-प्यासे बच्चों के लिए रोटियाँ सेंकी जा सकें. इस कवि के लिए सबसे बड़ा ताप चुल्हे की गरमी से मिलता है. यह कवि आग लिख रहा है, पर जानता है कि उसे ही अभी पानी भी लिखना है.

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