1971 War: When An Old Picture Instilled Fear In Pakistan Army In Tangail, And They Surrendered – 1971 की जंग : जब एक साल पुरानी तस्वीर से डर गई तंगैल में तैनात पाकिस्तानी फ़ौज, और कर बैठी सरेंडर
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ढाका पश्चिम में पद्मा नदी और पूर्व में मेघना नदी के बीच बसा है. भारतीय सेना की 2 और 33वीं कोर तेज़ गति से जमना-पद्मा नदी के पश्चिम में मौजूद जिलों में गहराई तक घुस गई थी. उधर, तेज़पुर में बेस्ड 4 कोर ने भी मेघना को पार करने के लिए ऑपरेशन शुरू किया, ताकि अंततः ढाका में प्रवेश कर सकें.
दुश्मन की सरहद में…
योजना के मुताबिक, ‘किलेबंदी’ ढहना शुरू हो जाने पर पाकिस्तानी फ़ौज ढाका की ओर पीछे हटने लगी, तभी भारतीय सेना ने बटालियन आकार के हवाई ऑपरेशन के ज़रिये पाकिस्तान को चकमा दिया, और एक ब्रिगेड से आमना-सामना किया, और फिर वही ब्रिगेड आखिरकार पूर्वी पाकिस्तान की फ़ौज के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल ए.ए.के. नियाज़ी के आत्मसमर्पण की वजहों में से एक बनी.
पाकिस्तानी फ़ौज की 93 इन्फ़ैन्ट्री ब्रिगेड ढाका के उत्तर में मौजूद जमालपुर और मैमनसिंह से पीछे हट रही थी, और तभी भारतीय सेना ने ऐसा कुछ किया, जो किसी ने सोचा भी न था. पैराशूट रेजिमेंट की दूसरी बटालियन या 2 पैरा को पश्चिम बंगाल के कलईकुंडा और दमदम बेस से एयरलिफ्ट किया गया और ढाका के उत्तर-पश्चिम में लगभग 85 किलोमीटर दूर तंगैल के पास पैरा-ड्रॉप कर दिया गया, ताकि वे जमालपुर-तंगैल रोड पर बने पूंगली पुल पर कब्ज़ा कर लोहागंज नदी पर बनी फ़ेरी साइट को काबू कर लें, और फिर 93 इन्फ़ैन्ट्री ब्रिगेड का रास्ता रोक लें.

उस दिन तंगैल जैसे हवाई ऑपरेशन को कामयबी से अंजाम देकर भारतीय वायुसेना ने पूर्वी पाकिस्तान में अपनी हवाई श्रेष्ठता स्थापित कर दी. 6 एएन-12, 20 फेयरचाइल्ड पैकेट्स और 22 डकोटा विमानों पर सवार होकर लेफ्टिनेंट कर्नल कुलवंत सिंह पन्नू की कमान के तहत 2 पैरा के लगभग 750 पैराट्रूपर Gnats और मिग-21 की सुरक्षा के बीच ड्रॉप किए गए. जहां इन्हें पैरा ड्रॉप किया गया, वह स्थान पूंगली पुल के पूर्व में स्थित था.

तंगैल के एयरड्रॉप की योजना युद्ध के दौरान नहीं बनाई गई थी, बल्कि जंग के आधिकारिक ऐलान से कई हफ़्ते पहले ही बनाई जा चुकी थी. भारतीय सेना के अधिकारी कैप्टन पीके घोष ने मुक्तिवाहिनी के कमांडर कादर सिद्दीकी से जुड़ने और हवाई ऑपरेशन के लिए ड्रॉप जोन को चिह्नित करने के लिए नवंबर में ही दुश्मन की सीमा में प्रवेश किया था. यह द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद सबसे बड़ा हवाई अभियान था और भारतीय उपमहाद्वीप में पहला था.
कलईकुंडा और दमदम से एयरलिफ़्ट किए गए लगभग 750 पैराट्रूपरों को 11 दिसंबर को शाम 4:30 बजे के आसपास ड्रॉप किया गया था.
ऐसी रही जंग…
2 पैरा ने पलटन-आकार की दो पाकिस्तानी टुकड़ियों के कब्ज़े से फ़ेरी साइट को कामयाबी से छीन लिया. तंगैल की ओर लौटते पाकिस्तानी फ़ौजियों ने पूंगली पुल पर हमला किया, लेकिन 2 पैरा ने कामयाबी से इसकी भी काट की. पाकिस्तानी फ़ौज ने दाएं-बाएं से बटालियन-आकार के हमले किए थे, लेकिन उनमें उन्हीं के 143 फ़ौजी मारे गए 29 फ़ौजियों के साथ उनके दो अफ़सरों को बंदी बना लिया गया. 2 पैरा को इस जंग में सिर्फ़ तीन जानी कुर्बानियां देनी पड़ीं.
12 दिसंबर को सुबह भी पाकिस्तान ने दो और हमले किए, जिन्हें 2 पैरा ने कतई नाकाम कर दिया, और इनमें 100 से ज़्यादा पाकिस्तानी फ़ौजी मारे गए. इसके बाद दिन के समय भारतीय वायुसेना का हवाई हमला हुआ, और पाकिस्तान की 93 इन्फ़ैन्ट्री ब्रिगेड (लगभग 2,000-3,000 फ़ौजी) का वजूद खत्म हो गया.
सूचना तकनीक से जंग…
लेफ्टिनेंट कर्नल (बाद में मेजर जनरल बने) कुलवंत सिंह पन्नू को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया. 2 पैरा ढाका पहुंचने वाली भारतीय सेना की पहली इकाई थी. इससे पहले वे 1 महार के साथ जुड़ चुके थे, और फिर वे ढाका में ही लेफ्टिनेंट जनरल नियाज़ी के ऑफ़िस में भी घुस गए थे. भारतीय सेना के तत्कालीन जनसंपर्क अधिकारी (PRO) राम मोहन राव ने इस ऑपरेशन को सूचना तकनीक के ज़रिये लड़ी जाने वाली जंग में इस्तेमाल करने का फ़ैसला किया.
अख़बारों को मिशन की जानकारी दी गई, लेकिन ऑपरेशन साइट पर किसी की मौजूदगी न होने के चलते पैराड्रॉप की तस्वीरें थीं ही नहीं. उस वक्त राम मोहन राव ने एक साल पहले आगरा में खींची गई एक तस्वीर साझा की, जो सेना के अभ्यास के दौरान उन्होंने खुद ही क्लिक की थी. इस तस्वीर में 50 पैरा ब्रिगेड (लगभग 3,000 जवान) ड्रॉप करते नज़र आ रहे थे. पाकिस्तानी फ़ौज ने तस्वीर देखी, और समझा कि 3,000 जवान तंगैल में ड्रॉप हुए हैं. इससे उनके मन में दहशत पैदा हो गई, और आखिरकार तंगैल ऑपरेशन पाकिस्तानी फ़ौज के आत्मसमर्पण की एक अहम वजह बन गया.
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