वैज्ञानिकों ने खोजा ऐसा ग्रह जो नहीं होना चाहिए, क्या है कहानी?
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सौरमंडल के बाहर हमारे खगोलविदों ने 5 हजार से भी ज्यादा बाह्यग्रह खोजे है और इनकी संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है. वैज्ञानिकों का मानना है कि अभी हमारी ही गैलेक्सी में औसतन हर तारे का एक ग्रह होना चाहिए. इस लिहाज से खोजे गए ग्रहों की संख्या बहुत ही कम है. फिर भी ग्रह तंत्रों और ग्रह निर्माण के बारे में हमारे वैज्ञानिक काफी कुछ जान चुके हैं. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें चौंकाने वाली जानकारी नहीं मिलती है. हाल ही मे एक पड़ताल में ऐसे ग्रह की खोज की है जिसके बारे में उनका अनुमान है कि उसका अस्तित्व होना ही नहीं चाहिए था.
सूर्य के जैसे तारे
अभी तक बाह्यग्रहों की खोज मेन स्वीक्वेंस तारों पर केंद्रित है जो कि हमारे सूर्य की तरह होते हैं. ऐसे तारो में हाइड्रोजन और हीलियम उनके क्रोड़ में होती है और वे अरबों साल तक स्थिर होते है. 90 फीसद से अधिक ज्ञात बाह्यग्रह मेन स्वीक्वेंस तारों के ही ग्रह के रूप में खोजे गए हैं. इन तारों के पास ही पृथ्वी जैसे ग्रहों के होने की उम्मीद ज्यादा होती है.
नहीं होना चाहिए था ग्रह
नए शोध में खगोलविदों ने ऐसे ही तारे का अध्ययन किया और पाया कि उसके ग्रह तंत्र में एक ऐसा ग्रह है जिसे अब तक खत्म हो जाना चाहिए था यानि अब तक वह ग्रह अपने तारे द्वारा निगला जा चुका होना चाहिए था. हाल ही में नेचर जर्नल में प्रकाशित हुए इस अध्ययन में शोधकरताओं ने इस ग्रह के अस्तित्व की पहेली को रेखांकित किया. इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने इस तरह के ग्रह के अभी तक कायम रहने की संभावित कारणों का भी पता लगाया है.
तारा निगलता है ग्रह
तारों की उम्र होती है. एक बार तारे क्रोड़ में हाइड्रोजन का पूरा उपयोग हो जाता है तब वह क्रोड़ संकुचित होने लगाता है जबकि तारे के ठंडा होने से बाहरी आवरण विस्तारित होने लगता है. इस अवस्थया में तारा लाल विशाल तारा कहलाता है और वह अपने आकार से 100 गुना तक बड़ा हो जाता है. हमारे सूर्य के साथ ऐसा होने पर वह बुध, शुक्र और शायद पृथ्वी तक को निगल सकता है
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