ये हौसला कैसे झुके….हादसे के बाद दिव्यांग हुई शैली, अब व्हीलचेयर पर बैठकर संवार रही दूसरों का भविष्य
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मोहित शर्मा/करौली. कहते हैं कि ज्ञान की प्राप्ति के लिए शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जो व्यक्ति में निखार लाता हैं. शिक्षा से वंचित गरीब बच्चों का भविष्य सुधार रही है शैली अग्रवाल. बचपन में घुड़सवारी के दौरान घोड़े पर से गिरने के बाद चाहे शैली आज तक जमीन पर खड़ी नहीं हो पाई हैं, लेकिन व्हीलचेयर पर भी रहकर उनके हौसले आज इतने बुलंद है कि वह अपने दर्द को दरकिनार कर शिक्षा से वंचित और गरीबी से घिरे बच्चों को पढ़ाई का महत्व समझा रही है. शैली ने अपने आसपास रहने वाले ऐसे ही बच्चों में शिक्षा का कुछ ऐसा भाव पैदा किया है कि आज वह सारे बच्चे भगत पाठशाला में पढ़कर शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं.
स्कूल से भी अच्छा पढ़ाती हैं दीदी
करीब 2 साल से भगत पाठशाला में पढ़ने आ रही सना खान बताती है कि दीदी हमें स्कूल से भी अच्छा पढ़ाती हैं. इसलिए हम दीदी की पाठशाला मे रोजाना आकर 2 घंटे पढ़ते हैं. उन्होंने बताया कि दीदी हमें पढ़ानें के साथ ड्राइंग और डांस भी सिखाती है और छुट्टी वाले दिन रविवार को नए-नए खेल भी खिलाती हैं.
इस तरह शुरू हुआ निशुल्क पाठशाला का सफर
शैली अग्रवाल बताती हैं कि निशुल्क पाठशाला की शुरुआत मैंने अपनी कामवाली आंटी की एक बेटी को पढ़ाकर शुरू की. शुरुआत में मेरे पास वह पढ़ने अकेली आती थी. लेकिन एक दिन उसने कहा कि दीदी में अपने साथ एक दो बच्चे और ला सकती हूं क्या. जिसके बाद आज ऐसे ही शिक्षा की इस निशुल्क पाठशाला में बच्चों की संख्या 3 साल में 100 के करीब हो गई है.
अब प्राइमरी स्कूल खोलने का है सपना
दिव्यांग शिक्षिका शैली अग्रवाल का कहना है कि बच्चों को निशुल्क शिक्षा उपलब्ध कराने वाली पाठशाला के बाद अब उनका आगे प्राइमरी स्कूल खुलने का सपना है. उनका मोटिव है की शिक्षा से वंचित और गरीब बच्चों को शिक्षा के दम पर आगे से आगे बढ़कर और कुछ बनकर अपना भविष्य उज्ज्वल बना सके.
घोड़े से गिरने के बाद दोनों पैरों ने छोड़ा साथ
शैली अग्रवाल के मुताबिक चलने फिरने और खड़े रहने की समस्या उन्हें जन्म से नहीं बल्कि जब वह वनस्थली विद्यापीठ से अपनी पढ़ाई कर रही थी तभी घुड़सवारी के दौरान घोड़े से गिरने के बाद मांसपेशियों में आई समस्या के बाद हुई. आज तक वह अपने दोनों पैरों पर खड़ी नहीं हो पाई है. फिर भी शैली ने अपनी इस कमी को अपने किसी भी कार्य में आड़े नहीं आने दिया है. पाठशाला में बच्चों को पढ़ने के साथ वह अपनी सभी कार्य व्हीलचेयर पर रहकर ही करती हैं.
व्हीलचेयर को कभी नहीं मानती अपनी कमी
जलदाय विभाग और बीसलपुर बांध में सहायक रहें कैलाश चंद अग्रवाल बताते हैं कि शैली बेटी मेरी शान और अभिमान है. इसने कभी भी व्हीलचेयर को अपनी कमी नहीं माना है. इसने तो ठान रखा है कि बस मुझे बच्चों को निशुल्क पढ़ाना है. कैलाश चंद बताते हैं कि शैली ने जो निशुल्क पाठशाला एक बच्ची से शुरू की, आज उस पाठशाला में बच्चों की संख्या 100 के आस-पास पहुंच गई है. हम तो यह चाहते हैं कि शैली की यह पाठशाला न केवल प्राइमरी स्कूल रहें बल्कि एक यूनिवर्सिटी बने.
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FIRST PUBLISHED : September 14, 2023, 17:25 IST
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