मां के प्रयास से दिव्यांग बेटी ने दुनिया में लहराया परचम, स्पेशल समर ओलंपिक में हासिल किया गोल्ड
[ad_1]
उमेश शर्मा/चंडीगढ़. जिद के आगे मुश्किल से मुश्किल परिस्थितियां भी हार मान जाती है. अगर आप में कुछ कर गुजरने की शक्ति हो तो प्रार्थना भाटिया की तरह आप ही अपने जीवन में अपने लक्ष्य को हासिल कर सकते है. आज हम आपको एक ऐसी एथलीट की कहानी बताएंगे, जिसने 5 साल तक मां शब्द तक नहीं बोला था. उसने देश भर में ही नहीं बल्कि दुनिया में अपना परचम लहरा दिया. जिस प्रार्थना को 5 साल की उम्र तक ठीक से बोलना तक नहीं आता था, आज वही पूरे देश की बेटी बनकर दुनिया में भारत का नाम रोशन कर चुकी है.
पैराएथलीट खिलाड़ियों का जब जिक्र होता है तो बात सिर्फ उनके हुनर की नहीं बल्कि हौंसलों की बात होती है. जहां उन्हे ना सिर्फ बड़ी से बड़ी चुनौतियों का सामना करना होता है बल्कि एक ऐसी लड़ाई लड़नी होती है जिसमें उनका सबसे बड़ा दुश्मन वे खुद होते हैं और सबसे बड़ा हथियार भी वे खुद होते हैं. आज बात प्राथना भाटिया की हो रही है.प्रार्थना ने बीते दिनों जर्मनी में स्पेशल समर ओलंपिक में स्विमिंग रिले में देश के लिए सिल्वर मेडल हासिल किया है. वीरवार को एक सम्मान समारोह में स्पेशल ओलंपिक भारत चंडीगढ़ चैप्टर की डायरेक्टर नीलू सरीन व ज्वाइंट डायरेक्टर स्पोर्ट्स सुनील राय ने प्रार्थना भाटिया व उनकी कोच शीतल नेगी को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया.
5 साल की उम्र तक बोलने में थी असमर्थ
प्रार्थना की मां बताती हैं कि दिमाग का विकास न होने के कारण प्राथना 5 साल की उम्र तक ना तो बोल पाती थी और ना ही सुन पाती थी. प्रार्थना ने 5 साल की उम्र में जाकर मां शब्द बोला था. पीजीआई में इलाज शुरू होने के बाद प्रार्थना के लिए आगे का सफर काफी संघर्षपूर्ण रहा. मां अंजू भाटिया ने बेटी के सपनों को पूरा करने के लिए पहले रूटिन सेट किया. और फिर बेटी के साथ योगा क्लास से लेकर स्टडी, डांस क्लास और पार्क में सैर किया करती थी.
कोच शीतल नेगी के देखरेख मे मिली सफलता
प्रार्थना की मां बताती हैं की भले ही प्रार्थना के दिमाग का विकास ना हुआ हो. लेकिन प्रार्थना 1 साल की उम्र से पिता के साथ स्विमिंग पूल में जाती थी. धीरे-धीरे कर ये प्रार्थना की आदत बन गई. और फिर बेटी के बढ़े होने पर मां अंजू ने स्पेशल गेम्स के लिए कोच शीतल नेगी से संपर्क किया और प्रार्थना की ट्रेनिंग शुरू करवाई. ट्रायल में सफल होने के बाद प्रार्थना भारतीय टीम का हिस्सा बनीं.
भारत के लिए गोल्ड जितना है लक्ष्य
वहीं प्रार्थना की कोच शीतल कोच नेगी ने बताया की स्पेशल बच्चों के साथ आपको अलग तरह से ट्रेनिंग करवानी पड़ती है. उनके मूड स्विंग, मोटिवेट करना और उनकी देखभाल ट्रेनिंग का अहम हिस्सा रहता है. वहीं अब प्रार्थना का सपना देश के लिए गोल्ड मेडल जीतना है. हम भी यही उम्मीद करते हैं की देश की बेटी प्रार्थना भारत का प्रतिनिधितत्व करते हुए देश के लिए गोल्ड मेडल जीते.
.
Tags: Chandigarh news, Haryana news, Local18
FIRST PUBLISHED : June 30, 2023, 11:13 IST
[ad_2]
Source link