बाढ़ और बारिश के बाद धान में दिखाई दे रहे ये 7 लक्षण…तुरंत करें ये 5 काम! नहीं तो फसल होगी बर्बाद

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रायबरेली. बीते कई दिनों से रुक-रुक कर हो रही बारिश से चारों तरफ जल जमाव की स्थिति बन गई है. जिसकी वजह से आम जनजीवन अस्त-व्यस्त होने के साथ ही फसलों पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ रहा है. जल जमाव अधिक होने के कारण धान की फसल में कई रोग एवं कीट लगने का खतरा भी बढ़ गया है. जिसमें प्रमुख रूप से फफूंद जनित बकानी रोग शामिल है. अधिक नमी व तापमान में बदलाव होने के कारण यह रोग धान की कुछ प्रजातियों को ज्यादा प्रभावित करता है. तो आइए कृषि विशेषज्ञ से जानते हैं. आखिर क्या है बकानी रोग और इससे बचाव का तरीका क्या है?

कृषि के क्षेत्र में 10 वर्षों का अनुभव रखने वाले रायबरेली जिले के राजकीय कृषि केंद्र शिवगढ़ के प्रभारी अधिकारी कृषि शिव शंकर वर्मा बताते हैं कि बारिश के बाद तेज धूप होना एवं खेतों में लगातार पानी का जमा होना धान की फसल के लिए काफी हानिकारक होता है. बारिश के मौसम में धान की फसल में बकानी रोग लगने का खतरा ज्यादा रहता है. खासकर बासमती प्रजाति के धान पर इस रोग का प्रकोप देखने को मिलता है.जिसमें प्रमुख रूप से बासमती की तीन प्रजातियों(पूसा 1718, बासमती 1692, बासमती 1509) में ज्यादा रहता है.

बकानी रोग के लक्षण : शिव शंकर वर्मा बताते हैं कि बकानी रोग लगने पर धान की फसल में इस तरह के लक्षण दिखाई देने लगते हैं.
लंबे और पतले पौधे : रोगग्रस्त धान के पौधे सामान्य पौधों की तुलना में अधिक लंबे और पतले हो जाते हैं.
पत्तियों का पीलापन: धान की पत्तियां पीली और हरी होने लगती हैं .धीरे-धीरे पत्तियां सूखने लगती हैं.
जड़ों का क्षय: रोगग्रस्त पौधों की जड़ें काली और सड़ी हुई दिखती हैं. जड़ों का विकास रुक जाता है. वे कमजोर हो जाती हैं.
फसल का गिरना: संक्रमित पौधे कमजोर होकर गिर सकते हैं.
तनों पर सफेद धब्बे: तनों पर सफेद रंग के धब्बे दिखाई दे सकते हैं, जो बाद में गुलाबी रंग में बदल जाते हैं.
विकास में रुकावट: रोगग्रस्त पौधे का सामान्य विकास रुक जाता है .वे धीरे-धीरे मर सकते हैं.

ऐसे करें बचाव: शिवशंकर वर्मा बताते हैं की धान बकानी रोग से बचाव के लिए किसान इन बातों का खास ध्यान रखें.
जल निकासी: खेत में जल निकासी का उचित प्रबंध करें .ताकि पानी जमा न हो.
खाद और उर्वरक: संतुलित मात्रा में खाद और उर्वरक का प्रयोग करें.
फंगसाइड का छिड़काव: फसल में बकानी रोग के लक्षण दिखाई देने पर फंगसाइड का छिड़काव करें. मेटलैक्सिल और मैनकोज़ेब जैसे फंगसाइड प्रभावी होते हैं. साथ ही 1 एकड़ में 3 किलोग्राम ट्राईकोडरमा, 500 ग्राम थायोफेनेट मिथाइल व 20 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन को 150 से 200 लीटर पानी में घोलकर धान की जड़ों में छिड़काव करें.
यूरिया का प्रयोग : रोग प्रभावित खेत में यूरिया का प्रयोग कम करें.

सफाई: खेत की सफाई रखें और निराई-गुड़ाई करें.ताकि अन्य खरपतवारों से बचाव हो सके.

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