'डेमोक्रेसी डे' पर तानाशाहों की बातें!
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ये क्या बात हुई, लोकतंत्र के पावन दिवस पर तानाशाहों की बातें ! बेशक दुनिया में डेमोक्रेसी से बेहतर दूसरा शासन नहीं है. ‘जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता का शासन’ इससे बेहतर अवधारणा क्या हो सकती है. ये सच है और इसका पुरजोर समर्थन है. लेकिन बात फिर भी तानाशाहों की ही करना चाहेंगे, इसलिए नहीं कि उनका समर्थन है, बल्कि इसलिए कि उनके क्रूर और काले कारनामे सामने लाकर लोकतांत्रिक सिस्टम के प्रति लोगों के प्रेम को और प्रगाढ़ कर सकें. बॉलीवुड हो या हॉलीवुड फिल्मों में हर जगह विलेन को ज्यादा से ज्यादा क्रूर और अत्याचारी दिखाया जाता है इसलिए नहीं कि उसका महिमा मंडन करना है, बल्कि इसलिए कि खलनायक जितना प्रबल और खूंखार होगा उस पर विजय पाने वाला नायक उतना ही महान और आदरणीय होगा.
[blurb]ये भी नहीं है कि हम क्रूर तानाशाह के किस्से सुनाकर लोगों को डराना चाहते हैं, कतई नहीं. हम इनकी कहानी सुनाकर कहना चाहते हैं, डेमोक्रेसी कितनी सुंदर, कितनी आदरयोग्य प्रणाली है, इसलिए हर कीमत पर इसकी रक्षा करना जरूरी है. डेमोक्रेसी में कितनी ताकत है कि हर देश चाहता है कि उसकी पहचान डेमोक्रेटिक कंट्री के रूप में की जाए. मज़ा तो तब आता है कि ऐसे देश भी अपने आपको लोकतांत्रिक देश कहलाने में गौरव मेहसूस करते हैं जहां लोकतंत्र के नाम पर एक व्यक्ति का शासन है और लगातार एकल शासन है. हम भारतीय लोकतंत्र के इस महत्व को बेहतर तरीके से जानते हैं और मानते भी हैं, इसीलिए भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश कहलाने का गौरव मिला हुआ है.[/blurb]
बात तानाशाहों की. क्रूर तानाशाहों की बात करें तो सबसे ताजा नाम याद आता है एडाल्फ हिटलर का. युद्ध के प्रति उसके प्रेम की सनक के चलते दुनिया का द्वितीय विश्वयुद्ध की विभीषिका को झेलना पड़ा. जिसमें 7 करोड़ से ज्यादा लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी. उसके अत्याचारों से पूरी दुनिया तब कांप उठी जब उसने 20 लाख से ज्यादा लोगों को इसलिए मौत के घाट उतार दिया क्योंकि उनका धर्म यहूदी था और यहूदी हिटलर को पसंद नहीं थे. हिटलर जर्मन की नाजी पार्टी का नेता था जो पहले विश्व युद्ध के बाद स्थापित हुई थी. नाजी पार्टी और उसके नेताओं का मानना था कि यहूदियों का विनाश करना न सिर्फ जर्मन बल्कि पूरी इंसानियत के लिए फायदेमंद होगा.
हिटलर से सीधे हम आते हैं आज के दौर के सबसे चर्चित और क्रूर तानाशाह नार्थ कोरिया के किम जोंग उन पर. हिटलर ने अपनी सनक के लिए धर्म की आड़ ली थी. लेकिन किम जोंग ने तो हद ही कर दी. एक खबर की मानें तो नॉर्थ कोरिया में रेड लिपिस्टिक तक लगाने की मनाही है. उत्तर कोरिया में फैशन से जुड़े कुछ सनक भरे नियम हैं जिनका पालन वहां के लोगों को करना जरूरी है. जो नहीं करता कड़ी सज़ा पाता है. रेड लिपिस्टिक पर पाबंदी क्यों है, इस पर आगे बात करेंगे पहले बता दें और क्या पाबंदियां हैं.
[blurb]किम जोंग उन ने बालों को लेकर 28 हेयर स्टाइल्स एप्रूव किए हैं. इनमें से 10 मेल और 18 फीमेल के लिए हैं. उत्तर कोरिया के निवासी इन हेयर स्टाइल्स के अलावा दूसरा हेयरकट नहीं अपना सकते. रिपोर्ट्स की मानें तो यहां हेयर कलर और स्पाइक्स रखने की छूट भी नहीं है.[/blurb]
कपड़ों में यहां स्किनी जीन्स पहनना अलाउ नहीं है क्योंकि यह वेस्टर्न फैशन का प्रतीक है. वेस्टर्न फैशन फॅालो नहीं कर सकते बात यहां आकर खत्म नहीं होती, यहां कोई लेदर ट्रेंच कोट भी नहीं पहन सकता. ये तो खुद किम जोंग उन पहनते हैं, 2019 से पहन रहे हैं. फिर इस पर पाबंदी क्यों ? इसीलिए तो नहीं पहन सकते, क्योंकि सनकी बादशाह नहीं चाहता कि कोई उनके फैशन को फॉलो करे. और तो और उनके जैसे फ्रेम का चश्मा पहनने पर भी यहां मनाही है. अमूमन होता ये है कि अगर आम लोग किसी सेलेब्रिटी की फैशन को फॉलो करें तो ये उसके लिए गर्व का अवसर होता है और इसे उसके फैन फॉलोइंग के रूप में देखा जाता है. लेकिन किम जोंग उन तो किम जोंग उन हैं, किसी से उनकी तुलना कैसी?
रेड लिपिस्टिक इसलिए बैन है क्योंकि यहां का शासक मानता है कि लाल रंग व्यक्तिवाद का प्रतीक है. इंडिविज़ुअलिज़्म यानि खुद को बड़ा मानने की फीलिंग. उत्तर कोरिया में सबसे बड़ा वहां का शासक ही तो है. उससे बड़ा कोई कैसे अपने आपको मान सकता है भले ही प्रतीकात्मक रूप से माने. सो नो रेड लिपिस्टिक इन नॉर्थ कोरिया.
इस बंद देश के कुछ और अजीबोगरीब नियमों की भी बात कर लेते हैं. उत्तर कोरिया में विदेशी फिल्मों और गानों पर बैन है. इंटरनेशनल कॉल करना क्राइम है. नेता के प्रति विश्वासघात यानि सीधे फांसी की सज़ा. राष्ट्रीय राजधानी में रहने के लिए परमीशन जरूरी. कोई आईफोन या लेपटॉप नहीं. देश छोड़ने की इजाज़त कतई नहीं. सेन्य सेवा अनिवार्य, कोई मरिजुआना कानून नहीं, हर रात बिजली कटौती. यहां सौ लोगों में से एक आदमी कार रख सकता है और महिलाएओं को सरकारी गाड़ी ड्राइव की अनुमति नहीं है. भले ही वो ट्रेफिक अधिकारी के रूप में ही कार्यरत क्यों न हो. महिलाएं स्कर्ट पहन सकती हैं लेकिन घुटनों को ढकना जरूरी है.
[blurb]यहां तक तो कुछ भी नहीं है. किम की क्रूरता की हद पार करने वाली घटना रोंगटे खड़े कर देती है. एक बार किम एक बैठक को संबोधित कर रहे थे, उस दौरान देश के तत्कालीन रक्षा मंत्री ह्योन योंग-चोल को झपकी आ गई. राजा बोल रहा है और अधिकारी सो रहा है. सहन नहीं किया जा सकता. आग बबूला किम ने सैकड़ों लोगों के सामने एंटी-एयरक्राफ्ट गन चलाकर उन्हें मौत के घाट उतरवा दिया.[/blurb]
चंगेज़ खान का नाम भी क्रूर तानाशाहों की लिस्ट में बहुत ऊपर आता है. यह तेरहवीं सदी का एक मंगोल आक्रमणकारी था. इसके सैनिक जिस शहर में दाखिल होते वहां मारकाट, लूट, हत्याएं और बलात्कार का दरिंदगी भरा खूंखार खेल खेला जाता. शहर को बर्बाद तो करते ही थे जाते-जाते वहां इंसानी खोपडि़यों का ढेर लगा जाते थे ताकि अपनी क्रूर ताकत से विरोधियों को हतोत्साहित और आतंकित किया जा सके. चंगेज़ खान ने बड़ी संख्या में मुस्लिमों का भी कत्ले आम किया था.
[blurb]नरभक्षी तानाशाह का खिताब पाने वाले और 2003 में मौत को गले लगाने वाले ईदी अमीन का जि़क्र भी जरूरी है. कहा जाता है कि युगांडा के इस तानाशाह शासक ने अपने कार्यकाल में आठ लाख से ज्यादा लोगों की हत्याएं करवाईं, जिनमें उसके राजनीतिक प्रतिद्वंदी भी शामिल थे. हैवानियत के चलते उसे मैड मैन ऑफ आफ्रीका कह कर भी पुकारा गया.[/blurb]
बेनिटो मुसोलिनी भी हिटलर की विचारधारा का अनुकरण करने वाला तानाशाह था. इटली के इस नेता ने राष्ट्रीय फासिस्ट पार्टी का नेतृत्व किया. फासीवाद की नींव रखने वाले नेताओं में उसका स्थान बहुत ऊपर था. सेकंड वर्ल्डवार के दौरान उसने एक्सिस समूह के साथ मिलकर युद्ध लड़ा. बाद में उसे इटली के पीएम का पद छोड़ना पड़ा और हिटलर की मदद से उत्तर इटली का कठपुतली कठपुतली शासक बना. मित्र सेनाओं के इटली पहुंचने पर उसका अंत हुआ. तानाशाह और भी हैं उनकी तलाश का काम पाठकों के जिम्मे.
बहरहाल, डेमोक्रेसी डे पर कामना है कि पूरी दुनिया इसका अनुसरण करे. लोकतंत्र के प्रति आदर की ये भावना उन दिलों में भी घर कर जाए, जहां तानाशाही अपनी गहरी जड़ें जमा चुकी है. क्या आप जानते हैं कि ‘जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता का शासन’ जैसी सटीक और आसान परिभाषा किसकी देन है. लोकतंत्र को लेकर ये बात सबसे पहले दुनिया के दूसरे सबसे बड़े लोकतंत्र अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने कही थी.
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