क्या था कनिष्क विमान हादसा, जिसकी कनाडा कभी पूरी नहीं कर पाया जांच, बच निकले 329 लोगों के हत्‍यारे

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Air India Plane Crash: भारत और कनाडा के रिश्‍ते इस समय अपने सबसे खराब दौर से गुजर रहे हैं. दोनों देशों के बीच संबंध खराब होने की नींव कई दशक पहले ही रख दी गई थी. हालांकि, भारत की ओर से बीच-बीच में संबंधों को सुधारने की पुरजोर कोशिश की गई, लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री पियरे ट्रूडो के समय से शुरू हुआ कनाडा का खालिस्‍तान प्रेम कभी खत्‍म ही नहीं हुआ. अब पियरे ट्रूडो के बेटे और कनाडा के मौजूदा प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो खालिस्‍तान समर्थक संगठनों के साथ रिश्‍तों की नई इबारत लिख रहे हैं. हालांकि, भारत के तथ्‍यात्‍मक पलटवार के बाद कनाडाई सरकार बैकफुट पर आ गई है.

भारत और कनाडा के बीच चल रहे इस संकट के बीच जानते हैं कि भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की चेतावनियों के बावजूद पूर्व पीएम पियरे ट्रूडो की अनदेखी के कारण कैसे एयर इंडिया का यात्री विमान कनिष्‍क बड़े हादसे का शिकार बना. अब से 38 साल पहले हुई इस घटना में विमान में सवार 329 लोगों की मौत हो गई थी. बता दें कि कनाडा इस घटना की जांच कभी पूरी नहीं कर पाया और आज तक हादसे के किसी भी आरोपी को सजा नहीं हो पाई है. जब भारत की ओर से सीबीआई ने हादसे की जांच करने की कोशिश की तो कनाडा ने कानून का सहारा लेकर रुकावटें खड़ी कीं और जांच पूरी नहीं होने दी. बता दें कि हादसे के बाद सिर्फ 131 यात्रियों के शव ही बरामद किए जा सके थे.

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क्‍या था एयर इंडिया का कनिष्‍क विमान हादसा?
एयर इंडिया की फ्लाइट-182 ने 23 जून 1985 को कनाडा के मॉन्ट्रियल शहर से उड़ान भरी. इस फ्लाइट को मॉन्ट्रियल से ब्रिटेन के लंदन, फिर भारत के दिल्‍ली होते हुए मुंबई पहुंचना था. बोइंग 747-237B का नाम सम्राट कनिष्क के नाम पर रखा गया था. इस विमान को आयरलैंड के हवाई क्षेत्र में 31,000 फीट की ऊंचाई पर बम से उड़ा दिया गया. हादसे के बाद विमान अटलांटिक महासागर में गिर गया. इस विमान हादसे में 329 लोगों की मौत हुई. मारे गए लोगों में 22 हवाई यात्री भारत में जन्मे थे, जबकि 280 लोग भारतीय मूल के कनाडाई नागरिक थे. यह घटना आधुनिक कनाडा के इतिहास में सबसे बड़ी सामूहिक हत्या थी.

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एयर इंडिया के विमान कनिष्‍क में हुए धमाके के बाद ज्‍यादातर मलबा समुद्र में डूब गया था. वहीं, हादसे के बाद सिर्फ 131 शव ही मिल पाए थे.

कनाडा की लापरवाही के कारण हुआ था हादसा
विमान हादसे की जांच और अभियोजन में करीब 20 साल का लंबा वक्‍त खर्च किया गया. लेकिन, विशेष आयोग ने प्रतिवादियों को दोषी नहीं माना और छोड़ दिया. साल 2003 में मानव हत्या की अपराध स्वीकृति के बाद सिर्फ एक व्यक्ति को इसी दिन टोक्‍यो में हुए एयर इंडिया के दूसरे विमान हादसे का दोषी माना गया. काउंसिल के गवर्नर जनरल ने 2006 में कनाडा के सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जॉन मेजर को जांच आयोग के संचालन के लिए नियुक्त किया. उनकी रिपोर्ट 17 जून 2010 को पूरी हुई. रिपोर्ट में स्‍पष्‍ट तौर पर बताया गया था कि कनाडा सरकार, रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस और कैनेडियन सेक्युरिटी इंटलिजेंस सर्विस की ओर से की गईं एक के बाद एक गलती के कारण आतंकवादी हमले को अंजाम दिया जा सका.

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कनाडा ने हादसा रोकने की नहीं की कोशिश
जांच आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, इसमें कहा गया था कि अगर हादसे को लेकर मिलने वाले इनपुट्स पर कनाडाई एजेंसियों ने ध्यान दिया होता तो अनहोनी को टाला जा सकता था. बाद में कनाडाई एजेंसियों ने कनिष्‍क विमान हादसे की जांच में भी लापरवाही बरती. हादसे को रोकने और बाद में इसकी जांच में कनाडा की तत्‍कालीन ट्रूडो सरकार का रवैया बेहद आपत्तिजनक था. यही नहीं, हादसे के आरोपियों के प्रति कनाडा नरम रवैया अपना रहा था. बता दें कि कनिष्‍क विमान को खालिस्‍तानी आतंकियों ने ही निशाना बनाया था. इसे 9/11 से पहले तक सबसे घातक विमानन आतंकी हमला माना जाता था. धमाका इतना घातक था कि विमान का कुछ मलबा आयरलैंड के तटीय क्षेत्र कॉर्क पर बिखरा मिला था. बाकी हिस्‍सा उत्‍तरी सागर में डूब गया.

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उड़ान के 45 मिनट में हुआ था बम धमाका
कनिष्‍क विमान में ये धमाका मॉन्ट्रियल से उड़ान भरने के 45 मिनट के भीतर कर दिया था. सीबीसी न्‍यूज की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मॉन्ट्रियल में मंजीत सिंह नाम का एक व्‍यक्ति एक सूटकेस के साथ विमान में आया था. लेकिन, उड़ान के समय वह व्‍यक्ति विमान में नहीं था. बम विमान में इसी सूटकेस के जरिये पहुंचाया गया था. कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, कनिष्‍क विमान के हमलावरों ने इसी दिन एयर इंडिया के एक और विमान में धमाका करने की योजना भी बनाई थी. हालांकि, उनकी ये योजना पूरी नहीं हो सकी. कनाडाई एनसाइक्‍लोपीडिया के मुताबिक, 23 जून 1985 को जापान के दो कैरियर हैंडलर टोक्यो के नरीता एयरपोर्ट पर एक फ्लाइट से सूटकेस उतार रहे थे. इस दौरान उन्‍होंने वैंकुवर से आए एक बैग पर एयर इंडिया फ्लाइट का टैग लगा देखकर उठाया और धमाका हो गया. इसमें दोनों की मौत हो गई.

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कनिष्‍क विमान में ये धमाका मॉन्ट्रियल से उड़ान भरने के 45 मिनट के भीतर कर दिया था.

तीन संगठनों ने ली धमाके की जिम्‍मेदारी
कनिष्‍क हादसे के कुछ ही देर बाद न्‍यूयॉर्क में न्‍यूजपेपर्स ऑफिसिस के फोन की घंटियां घनघनाने लगीं. ये कॉल्‍स विमान हादसे की रिपोर्ट्स के लिए नहीं, बल्कि जिम्‍मेदारी लेने के लिए घनघनाए थे. इस हादसे ही जिम्‍मेदारी दशमेश रेजिमेंट, कश्‍मीर लिबरेशन आर्मी और ऑल इंडिया सिख स्‍टूडेंट्स फेडरेशन ने ली थी. कनाडा के अधिकारियों को शक था कि सिख आतंकवादियों ने ऑपरेशन ब्‍लू स्‍टार का बदला लेने के लिए कनिष्‍क विमान को निशाना बनाया था. बाद में पता चला कि धमाके की पूरी योजना कनाडा में बैठकर ही बनाई गई थी. भारत सरकार की ओर से जस्टिस बीएन कृपाल की अध्‍यक्षता में बने जांच आयोग ने पाया कि ये आतंकी हमला ही था.

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पंजाब पुलिस से मुठभेड़ में मारा गया मास्‍टरमाइंड
विमान हादसे की जांच कर रही सीबीआई ने भी पाया था कि धमाके में आतंकी संगठन बब्‍बर खासा इंटरनेशनल का हाथ था. सीबीआई जांच में पता चला कि विमान हादसे का मास्‍टरमाइंड बब्‍बर खालसा इंटरनेशन का नेता तलविंदर सिंह परमार था. हास्‍यास्‍पद है कि एक साथ दो विमानों में हमले की इस वीभत्‍स साजिश में सिर्फ एक व्‍यक्ति इंद्रजीत सिंह रेयात को दोषी ठहराया गया था. रेयात को भी कनिष्‍क विमान हादसे के लिए दोषी नहीं माना गया था. उसे टोक्‍यो के नरीता एयरपोर्ट पर हुए बम धमाके में दशकों बाद दोषी मानकर उम्रकैद की सजा दी गई थी. बाद में उसे कनाडा से निकाल दिया गया था. वहीं, धमाके के मास्‍टरमाइंड को कभी दोषी नहीं ठहराया गया. हालांकि, 1992 में भारत लौटने पर वह पंजाब पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारा गया.

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संदिग्‍धों में कोई था मैकेनिक तो कोई व्‍यापारी
बम धमाके के मुख्य संदिग्धों में आतंकी संगठन बब्बर खालसा के सदस्य शामिल थे. इसके अलावा उस समय पंजाब में खालिस्तान की मांग के लिए आंदोलन कर रहे कुछ संगठन भी संदेह के दायरे में थे. मुख्‍य संदिग्‍धों में पंजाब में पैदा हुआ कनाडाई नागरिक तलविंदर सिंह परमार था. वह ब्रिटिश कोलंबिया में बब्बर खालसा का उच्च पदस्थ अधिकारी था. उसका फोन बम धमाके से तीन महीने पहले से कनाडाई खुफिया सुरक्षा सेवा टैप कर रही थी. दूसरा आरोपी इंद्रजीत सिंह रेयात वैंकूवर के डंकन में रहता था. चह एक ऑटो मैकेनिक और बिजली मिस्त्री के तौर पर काम कर रहा था. रिपुदमन सिंह मलिक वैंकूवर का एक व्यापारी था. उसने एक क्रेडिट संघ और कई खालसा स्कूलों के लिए फंड देकर मदद की थी. उसे दोषी नहीं पाया गया.

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सीबीआई ने जांच में पाया कि कनिष्‍क विमान हादसे के लिए खालिस्‍तानी आतंकी संगठन बब्‍बर खालसा जिम्‍मेदार है.

कैसे बच निकले हादसे के ज्‍यादातर आरोपी
कनिष्‍क हादसे के संदिग्‍धों में एक मजदूर अजायब सिंह बागड़ी भी था, जो कामलूप्स में रहता था. रिपुदमन सिंह मलिक के साथ उसे भी 2007 में दोषी नहीं पाया गया. सुरजन सिंह गिल वैंकूवर में बसा खालिस्तान का महा-सलाहकार था. वह कनाडा से फरार हो गया. माना जाता है कि वह ब्रिटेन के लंदन में छिपा है. हरदयाल सिंह जोहल और मनमोहन सिंह दोनों परमार के करीबी थे. जोहल की 15 नवंबर 2002 को सामान्‍य मौत हो गई. जोहल ने वैंकूवर स्कूल के एक तहखाने में सूटकेसों में बम प्‍लांट किया था, लेकिन उस पर कभी भी आरोप नहीं लगाया गया. दलजीत संधू को एक गवाह ने बमबारी के लिए टिकट जुटाने वाले के तौर पर पहचाना. उसे भी कनाडा के कोर्ट ने बरी कर दिया. एक अन्‍य आरोपी लखबीर सिंह बराड़ रोडे सिख अलगाववादी संगठन इंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन का मुखिया था. सबूतों की कमी के कारण वह भी बच निकला.

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सीबीआई की राह में कनाडा की अड़चनें
भारतीय जांच एजेंसी सीबीआई को कनाडा ने इस मामले की जांच में हादसे के एक साल बाद शामिल किया. सीबीआई ने पाया कि कनिष्क विमान को बम से उड़ाने की साजिश बब्बर खालसा इंटरनेशल ने रची थी. सीबीआई ने पाया कि इस घटना को जून 1984 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में की गई भारतीय सेना की कार्रवाई का बदला लेने के लिए अंजाम दी गई थी. सीबीआई ने इंद्रजीत, रिपुदमन, अजायब और हरदयाल को संदिग्‍ध मानकर जांच की. सीबीआई की तैयारियां तब बेकार हो गईं, जब कनाडा के कोर्ट में उनकी गवाही नहीं होने दी गई. दरअसल, कनाडा की जांच एजेंसियां अपनी पड़ताल को तव्‍वजो दे रही थीं. सीबीआई के जुटाए सबूतों को उन्‍होंने तव्‍वजो ही नहीं दी. यही नहीं, कनाडा का एक कानून भी दोषियों के लिए मददगार बना. दरअसल, कनाडा के कानून के मुताबिक जांच एजेंसियों को किसी की बातचीत सुनने के लिए कोर्ट से आदेश लेना जरूरी है. वहीं, कनाडा की जांच एजेंसियों ने ऐसा नहीं किया.

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मुकदमा चलने से पहले ही हो गया खत्‍म
कनाडा की जांच एजेंसियों को जब लगा कि उनका मुकदमा कमजोर है तो वे मामले को कोर्ट लेकर ही नहीं गए. ऐसे में मुकदमा शुरू होने से पहले ही खत्‍म हो गया. इस घटना को लेकर कोई मुकदमा कनाडा के किसी कोर्ट में शुरू ही नहीं हुआ. नरीता एयरपोर्ट पर हुए बम धमाके की जांच आगे बढ़ी. इसमें पाया गया कि बम बनाने में इस्तेमाल आईईडी के कुछ हिस्‍सों की खरीदारी क्रेडिट कार्ड से की गई थी, जो इंद्रजीत का था. इंद्रजीत के खिलाफ मुकदमा चलाया गया. इंद्रजीत को कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई. बाद में वह पैरोल पर रिहा कर दिया गया. फिर उसे कनाडा से निकालकर जर्मनी भेज दिया गया. बता दें कि इस मामले में जांच में कनाडा और भारत की जांच एजेंसियों की कोई भूमिका नहीं रही थी.

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