अघोरी शवों के साथ क्‍यों बनाते हैं शारीरिक संबंध? कौन होते हैं अघोरी

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Rituals of Aghoris: अघोरी बाबा सुनते ही एक वीभत्स सा रूप आंखों के सामने नजर आने लगता है. अघोरियों को राख से लिपटे, इंसानी शव का मांस खाने वाले, जादू टोना और तंत्र-मंत्र करने वाले साधुओं के तौर पर जाना जाता है. सबसे पहले जानते हैं कि अघोरी शब्द का मतलब क्‍या है? संस्कृत भाषा में अघोरी का मतलब ‘उजाले की ओर’ होता है. इस शब्द को पवित्रता और सभी बुराइयों से मुक्त समझा जाता है. वहीं, अघोरियों का रहन-सहन इसके उलट ही नजर आता है. आम लोगों के बीच अघोरियों की दुनिया को रहस्‍यों से भरा हुआ माना जाता है. अघोरियों की अजीब नजर आने वाली रहस्‍यमयी दुनिया के कुछ पहलुओं के बारे में जानते हैं.

अघोरियों के बारे में कहा जाता है कि वे इंसानों के शव का कच्चा मांस खाते हैं. यह बात एकदम सच है. दरअसल, बहुत से इंटरव्यू और डाक्यूमेंट्रीज में यह बात कई अघोरियों ने स्‍वीकार की है कि वे इंसान का कच्चा मांस खाते हैं. कच्‍चा मांस खाने वाले अघोरी श्मशान घाट में रहते हैं. ये श्‍मशान में अधजली लाशों को निकालकर उनका मांस खा लेते हैं. यही नहीं, बिना किसी संकोच के शरीर के द्रव्य का भी इस्‍तेमाल करते हैं. दरअसल, उनका मानना है कि ऐसा करने से उनकी तंत्र शक्ति ज्‍यादा प्रबल होती है. दूसरे शब्‍दों में कहें तो जो बातें आम लोगों को वीभत्स लगती हैं, वे अघोरियों के लिए साधना का हिस्सा हैं.

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‘शव से शिव की प्राप्ति’ में तीन साधानाएं
अघोरी शिव और शव के उपासक होते हैं. अघोरी अपने अस्तित्‍व को पूरी तरह से शिव में लीन करना चाहते हैं. बता दें कि शिव के पांच स्‍वरूपों में एक रूप ‘अघोर’ भी है. शिव की उपासना करने के लिए ये अघोरी शव पर बैठकर साधना करते हैं. ‘शव से शिव की प्राप्ति’ का यह रास्ता अघोर पंथ का सूचक है. इस तरीके से उपासना करने वाले अघोरी तीन तरह की साधनाएं करते हैं. इनमें पहली शव साधना में शव को मांस और मदिरा का भोग लगाया जाता है. दूसरी, शिव साधना में शव पर एक पैर के सहारे खड़े होकर शिव की साधना की जाती है. तीसरी, श्मशान साधना में हवन किया जाता है.

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अघोरी अपने अस्तित्‍व को पूरी तरह से शिव में लीन करना चाहते हैं.

क्‍यों बनाते हैं शव के साथ शारीरिक संबंध
धारणा है कि अघोरी शवों की साधना के साथ ही उनके साथ शारीरिक संबंध भी बनाते हैं. यह बात खुद अघोरी मानते हैं. वे कहते हैं कि ये शिव-शक्ति की उपासना का एक तरीका है. उनका कहना है कि वीभत्स में भी ईश्वर के प्रति समर्पण उपासना का सबसे सरल तरीका है. वे मानते हैं कि अगर शव के साथ शरीरिक क्रिया के समय भी मन ईश्वर भक्ति में लगा रहता है तो इससे ऊंचा साधना का स्तर कोई नहीं हो सकता है. दूसरे पंथ के साधुओं की तरह अघाेरी ब्रह्मचर्य का पालन नहीं करते हैं. अघोरी शव पर राख से लिपटे मंत्रों और ढोल नगाड़ों के बीच शारीरिक संबंध बनाते हैं. यह शारीरिक संबंध बनाने की क्रिया भी साधना का ही हिस्सा है, खासकर उस समय जब महिला के मासिक चल रहे हों. कहा जाता है कि ऐसा करने से अघोरियों की शक्ति बढ़ती है.

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अघोरी अपने पास क्‍यों रखते हैं नरमुंड?
अघोरियों की तस्वीरों में आपने देखा होगा कि उनके पास एक इंसानी खोपड़ी होती है. दरअसल, अघोरी इंसानी खोपड़ियों को बर्तन की तरह इस्‍तेमाल करते हैं. इसीलिए इन्‍हें कपालिक भी कहा जाता है. अघोरियों के मुताबिक, उनको इसकी प्रेरणा शिव से ही मिली है. कई कथाओं में बताया जाता है कि एक बार शिव ने ब्रह्मा का सिर काट दिया था. इसके बाद उनका सिर लेकर उन्होंने पूरे ब्रह्मांड के चक्कर लगाए. शिव के इसी रूप के अनुयायी होने के कारण अघोरी भी अपने साथ नरमुंड रखते हैं. वहीं, अघोरियों को कुत्तों से काफी लगाव होता है. अमूमन अघोरी गाय, बकरी या इंसान से दूरी बनाकर रखते हैं, लेकिन अपने आसपास कुत्ता रखना पसंद करते हैं.

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अघोरी श्‍मशान में शव पर खड़े होकर साधाना करते हैं. यही नहीं, वे अधजले का शव का मांस भी खाते हैं.

हर इंसान को क्‍यों मानते हैं अपने जैसा?
ज्‍यादातर हर इंसान को अपने जैसा अघोरी ही मानते हैं. दरअसल, उनका मानना है कि हर व्यक्ति अघोरी के रूप में ही जन्म लेता है. इसके पीछे उनका तर्क है कि अबोध बच्चे को अपनी गंदगी और भोजन में कोई अंतर समझ नहीं आता है. ठीक ऐसे ही अघोरी भी हर गंदगी और अच्छाई को एक ही नजर से देखते हैं. बहुत से अघोरियों ने यह भी दावा है कि उनके पास एड्स और कैंसर का भी इलाज है. हालांकि, इसका कोई वैज्ञानिक प्रूफ नहीं है. फिर भी अघोरियों का कहना है कि शव के शरीर से तेल निकालकर उन्होंने बड़ी से बड़ी बीमारी का इलाज ढूंढ निकाला है.

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